दिनचर्या
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण कुमार शर्मा1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तमाम आदतों का समुच्चय
जब रोज़मर्रा का हिस्सा बन
जाता है
तब उसे नाम दिया जाता है: दिनचर्या।
अच्छी आदतें जब दैनिक जीवन
में शामिल होने लगें तो कहा जाता
है कि दिनचर्या ठीक पटरी पर
चल रही है।
और इसके उलट ख़राब आदतें
जब हमारे जीवन में दिन-रात
दख़ल देने लगें तो इसका
अभिप्राय है कि दिनचर्या
बेपटरी हो चली है।
इस तरह दिनचर्या
किसी भी स्वस्थ जीवन का
सर्वप्रमुख आधारस्तम्भ है।
इसके गड़बड़ाने से जीवन
रूपी इमारत ताउम्र डगमगाती ही
रहती है और एक दिन
भरभराकर गिर जाती है!
दिनचर्या किसी भी जीवन रूपी
इमारत की नींव होती है
जो ठीक ठाक हो
तो मज़बूती देती है अन्यथा
उस इमारत को ज़मींदोज़ कर डालती है!!
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