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अहिंसा

 

बापू की जयंती की तैयारी पूरे शहर में ज़ोर-शोर से चल रही थी। दो दिन बाद ही गाँधी जयंती थी लेकिन शहर के सबसे बड़े गाँधी पार्क में गाँधी की प्रतिमा खण्डित हो रखी थी। सबसे पहले महापौर के बेटे का घूमते वक़्त उस प्रतिमा पर ध्यान गया था। उसने अपने पापा से कहकर सबसे पहले उस खंडित हुई प्रतिमा को सही करवाया। बापू की जयंती वाले दिन कई सारे नेता आए और ख़ुशी-ख़ुशी उस प्रतिमा पर फूल-मालाएँ पहनाकर चले गए। 

कुछ समय के पश्चात जब शाम का समय हुआ तो एक सफ़ाई कर्मी बेचारा वहाँ आया और प्रतिमा के आसपास जो नेता लोग गंदगी फैला कर गए थे उसकी साफ़-सफ़ाई में लग गया। तभी पार्षद का लड़का और उसके कुछ चमचे वहाँ पार्क में आकर बीड़ी, सिगरेट, दारू आदि का नशा कर रहे थे और वहाँ गंदगी फैलाने लगे तभी वो सफ़ाई कर्मचारी उनको इस तरह गंदगी फैलाने की मना करने लगा लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी। 

बातों ही बातों में उस सफ़ाईकर्मी के साथ वे लोग धक्का-मुक्की करने लगे। उसी समय वहाँ पर महापौर का लड़का घूमने आया हुआ था और उसने जब यह सब नज़ारा देखा तो वह भी वहाँ आ पहुँचा और उनका बीच-बचाव करने लगा लेकिन वह पार्षद का लड़का उससे भी धक्का-मुक्की करने लगा। महापौर के लड़के ने उसे बहुत ही विनम्रता से उसे समझाया लेकिन वह तो हाथापाई पर आ गया। 

महापौर का वह लड़का देखने में बहुत ही सुडौल था और पार्षद का लड़का देखने में सूखी लकड़ी सा था फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। महापौर के लड़के के लाख समझाने के बावजूद वे लोग नहीं माने और सफ़ाई कर्मी की पिटाई करने लगे साथ में उस महापौर के लड़के को भी नहीं बख़्शा। पार्षद के लड़के ने उसके एक थप्पड़ रसीद कर दिया। 

इतना सब होने के बावजूद वह महापौर का लड़का समझाइश और बीच-बचाव करता रहा लेकिन वे लोग उन दोनों को धमकाते रहे। जबकि एक प्रभावशाली व्यक्ति का बेटा होने के बावजूद वह उस सफ़ाईकर्मी को बचा कर दूर ले गया और उसका प्राथमिक उपचार के लिए उसे पास ही के क्लिनिक में ले गया। 

वहाँ एक सभ्य बुज़ुर्ग ये सब देख रहे थे और सोचने लगे कि पार्षद के लड़के से हर क्षेत्र में समर्थ होने के बाबजूद भी वह महापौर का लड़का पार्षद के उस लड़के के व्यवहार को सहन कर गया और सफ़ाईकर्मी को बचा कर ले गया। सच्चे मायनों में महापौर के लड़के का यह व्यवहार अहिंसा का अद्भुत उदाहरण था। 

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