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पिता

 

एक ऐसा भारी भरकम शब्द
जो हर बेटे को बोझ में ला देता है
लेकिन ये बोझ असहनीय या तकलीफ़देह
क़तई नहीं होता। 
ये तो वह बोझ है जो हर बेटे को
समझदार और अनुशासित बना डालता है। 
 
‘पिता’
एक नारियल की तरह होता है
जो बाहर से कठोर लेकिन अंदर
से नारियल की मलाई की
तरह एकदम मुलायम। 
 
‘पिता’
सन्तान के लिए वृहद्‌ वटवृक्ष
की तरह होता है
जो हर तरह की सांसारिक तपन
से अपने बच्चों को महफ़ूज़ रखता है। 
 
‘पिता’
एक ऐसी कड़वी औषधि है जो
चखने में भले ही स्वाद हीन लगे
लेकिन शरीर के हर विकार को
ठीक करने में असरकारक होती है। 
 
‘पिता’
तो उस बैल की तरह है
जो परिवार रूपी जुए को अंतिम स्वास
तक अपने कांधों पर सहर्ष ढोता रहता है। 
 
‘पिता’
एक ऐसी अवर्णनीय भावना है
जिसे केवल महसूस किया जा सकता है, 
शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। 

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