आशा
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव3 May 2012
भीतर तुम्हारे,
(हाँ, वहीं!! )
मैं क़रीब महसूस करता हूँ-
ईश्वर के
(जाने ज़िन्दा हैं भी या नहीं)
और तुमने,
धीरे-धीरे चुरा ली
मेरी आवाज़,
(हाँ, कभी मेरे पास भी थी वह! )
यहाँ से निकलने का
एक रास्ता जानता हूँ,
पर
अभी तो सारी ज़िन्दगी बाक़ी है।
(हाँ, अब भी यही लगता है)
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