हूँ-1
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव23 May 2017
तुमने कहा था
उस रात
जब भी बहाव तेज़ होगा
और मैं लड़ रही हूँगी अकेले,
तुम मेरे पास रहोगे।
पर आज,
कहाँ हो तुम?
विन्नी ‘द पूह’
थक हार कर
आँखों के कोनों से
खोज रहा है शहद
और चीख रहा है
‘नहीं, मैं शहद नहीं खोज रहा’।
विन्नी ‘द पूह’ (एक कार्टून भालू) एक सुहाना दिन देख कर अपनी हमेशा की शहद की खोज भी भूल गया और बस बैठ कर मौसम का आनन्द लेने लगा। जब उसकी आँख खुली तो अपने आस-पास शहद के लबालब भरे हुए बरतन देख कर ख़ुशी से भौचक्का रह गया। उस रात जब वह शहद से लिपटा हुआ अपने मित्र ईयोर (गधा) से मिला तो ईयोर ने दार्शनिक ढंग से कहा, “मधु तो सदा ही होता है—पर वह तभी मिलता है जब तुम उसे ढूँढ़ते नहीं!” पूह ने सोचा कि वह अपने मित्र की बात समझ गया है।
कई दिन तक वह अचानक इधर-उधर नज़र डाल कर देखता पर शहद कहीं भी नहीं दिखता था। यहाँ तक कि उसने फिर से बैठने का भी प्रयत्न किया और ज़ोर से कहा भी, “मैं शहद नहीं ढूँढ़ रहा!” पर जब भी उसने आँख खोली, शहद फिर भी उसे नहीं मिला।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं