हूँ / फ़्रीडम हॉल
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव3 May 2012
आज
तुम पूछते हो
कल-सी क्यों नहीं?
पर कल भी तुम
मुझसे ख़ुश न थे!
कहते हो—
कमज़ोर हूँ,
नहीं है ठहराव!
क्यों तुम्हें खटकती है,
मेरी यह स्वतंत्रता?
मैं
तुमसे ही नहीं,
अपने कल से भी
स्वतंत्र हूँ!
मुझे समझ लो अगर
पूर्णता में,
तो क्या यह मेरी
मौत न होगी?
विचार,
तरल न हों,
तो विचार कैसे?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं