शव भक्षी
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव3 May 2012
कहीं कुछ लाशें
मिल जाएँ थोक में,
आ जाते हैं वहीं
ये अजीब से मकोड़े।
इन लाशों से
बनाते हैं अपना मुकुट
राज करने के लिए
भविष्य की लाशों पर।
कुछ ही दिनों में
ग़ायब हो जाता है
लाशों का ढेर।
रह जाते हैं मकोड़े
सिर्फ़ मकोड़े
इंतज़ार में . . .!
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