लोरी
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
भारत के हर बेटे के
उग आते हैं लंबे नाख़ून
ख़ूब पैने होते हैं दाँत।
मेरे देश की माँएँ
अपना ख़ून छान-छान कर
पिलाती हैं दूध, बड़े प्यार से।
सुनाती हैं
शहद में भीगी
मीठी-सी लोरी।
कई बरसों बाद जब
लौटता है बेटा,
उतार कर धर देता है
माँ के पैरों में
हड्डियों से बना मुकुट,
छूता है पाँव
तेज़ रोशनी में—ठंडी रोशनी में—
हज़ारों नज़रों के बीच,
तब याद आता है माँ को
उस शहद-बुझी लोरी में छिपा
शोकगीत—
उसके मिट जाने का संगीत।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं