लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव1 Aug 2023 (अंक: 234, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
लोकतंत्र के नए महल की
बंद हैं सब खिड़कियाँ
चक्करदार गलियों की धूल से
मिट्टी की सौंधी गंध से
भूखे खेतों से
धूप में तपते पेटों से
दूर यहाँ हुआ था यज्ञ
शक्ति को रिझाने का
रामराज के नए राजा ने
यज्ञ में आहुति दी
अपने कमलनयनों की
खोपड़ी में लगा लिए उसने
बिल्लोरी कंचे
जो बुनते हैम सपनों के इंद्रजाल
बाँधे रखते हैं सब को
एक अटूट सम्मोहन में
—
अँधेरे गर्भगृह में
धूप से पचहत्तर वर्ष दूर
कुछ कुर्सीजीवी कीड़े
चट कर गए दुनिया की सबसे लम्बी नियमावली
काग़ज़ के उस सफ़ेद ढेर से
उस सारी काली स्याही से
उन कुर्सीजीवी कीड़ों ने बनाया
एक सुनहरा राजदंड
जिसपर बैठा था एक ज़िद्दी बैल
जिसे लोग समझ बैठे थे सांड।
—
महल के बाहर उमड़ा
एक जन सैलाब
सेना ने किया उसे
तितर-बितर
राजदंड का आदेश हुआ
कि राजदंड की खिल्ली उड़ाने वाला यह जन समूह
दरअसल गणद्रोही है
राजदंड के सामने नतमस्तक हो
वे माने अपनी भूल
वरना यह राजा चुन लेगा
एक नयी प्रजा।
—
महल के बीचों-बीच है
सिंहासन
उसकी जड़ों का जाल बिछा है
सतह से एक इंच नीचे
पूरे राज्य में
बैठता है जो भी सिंहासन पर
सींचता है इन जड़ों को
गर्म ख़ून से
उसके इशारे पर नाचती हैं
तने से उगी काँटेदार झाड़ियाँ
राजा के एक इशारे पर
जकड़ लेती हैं किसी को भी
छोटे-छोटे छेद उतार देती हैं
लाल खाल में
और टपकने देती हैं लहू
जब तक सफ़ेद ना हो जाए खाल
बिल्लोरी कंचों का सम्मोहन
चिपकाए रखता है
एक मुस्कान उसके होंठों पर
और शाही नीले बेर खा
मस्त रहता है राजा
छाई रहती है सदा
मतवाले हाथी सी मस्ती।
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