हूँ-2
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव3 May 2012
आज,
जब पत्थर बरसे उसपर
पुकारा नहीं उसने मुझे।
मैं,
खाना बीच ही में छोड़कर,
उसकी मदद करने उठ चला।
पर
दरवाज़े तक पहुँचकर,
मुझे वापस आना पड़ा।
उसने उठा लिया था पत्थर
अपनी मदद करने के लिए।
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