नियति
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव23 May 2017
निरंकुश को रोकने के लिए
आज आतंक का सहारा लिया,
लोग तुम्हारे साथ हैं,
अच्छा है।
उठने वाली हर सही आवाज़ को
कल कुचल दोगे,
अपने ख़िलाफ़ उठती हर सोच को
आतंकित कर दोगे।
अच्छा है।
विकास के बुलडोज़र के चलते,
सब अच्छे घरों में रहेंगे,
रंगीन टीवी देखेंगे।
जानेंगे, कहीं दूर—
आतंकी कुचले जा रहे हैं,
बहुत ख़तरनाक आतंकी,
इस ही लिए पहरा है,
हमारी सोच पर।
अच्छा है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं