यूक्रेन
काव्य साहित्य | कविता कुमार लव1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
उड़ान भरते हैं
हर रोज़ कुछ जहाज़,
बस निरीक्षण भर करके
लौट आते हैं।
. . .
मेरे घर में
खुलती है एक खिड़की
इंस्टाग्राम की।
रोज़ दिखती है वह
केक बनाती,
और पहुँच जाता है
एक झोंका ख़ुशी का
मेरे घर।
. . .
उसके कमरे की दीवार में
रहती है एक खिड़की
खुलती है हर रोज़
उसके गाँव पर।
आज उसने दिखाए
मलबे के ढेर।
आसमान तक पहुँचती
धुएँ की मीनारें,
और जेब में बीज लिए
(सूरजमुखी के, सफ़ेद आक के)
कुछ बालक।
घर के पास ही
या कहीं बहुत दूर,
ये बालक लड़ेंगे, मरेंगे,
मारे जाएँगे, शहीद कहलाएँगे।
और छोड़ जाएँगे
किसी खिड़की के नीचे
रोज़ मुस्कुराते
फूल, सूरजमुखी के।
. . .
उसकी खिड़की से,
मेरी खिड़की से,
चले आएँ हैं हवा पर सवार
बीज।
अश्रु-स्वेद-रक्त से
सींचे किसी पौधे के,
सफ़ेद आक के।
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