अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

चार दृश्य

दृश्य कुछ ऐसा है
शीत ऋतु की सिहरन में
आज धूप जला रही है उसे
एक दरी बिछी है कोने में
दोनों हाथ जोड़े वह ग़रीब पस्त दरी पर। 
आंतड़ियाँ सिकुड़, आँखें धँस गईं 
असमंजस में, लगता है शायद भूखा है
वह नेताओं के कहने पर बैठा है
सामने एक ऊँचा स्टेज सजा है। 
 
दृश्य कुछ ऐसा है
चीख रहा लाउडस्पीकर भाषणों के बोलों से
पच्चीस ग्राम ईमान लिए दिखाते सज्जनता
पच्चीस किलो फूलों की माला कंठ में लाद
माँग रहे न्याय उस ग़रीब के लिए
जो करता भूख हड़ताल। 
 
एक सिंहासन सजा है मध्य में
आसपास चमचों से सजा दरबार
तप रहे हैं कई मुद्दे, माहौल गरमा रहा
सिकुड़ रहा क़ानून अस्मिता बचाता। 
 
दृश्य कुछ ऐसा है
बंकर गाड़ियों का हुजूम जमा है
असंख्य वर्दी धारी मुस्तैद पहरा दे रहे
सरकारी आदेश है शान्ति बहाल हो। 
भूखा-ग़रीब दहाड़ रहा
पास बेहोश पड़ा साथी शायद दम तोड़ रहा
अचानक लाठियों की बरसात होने लगी शोर में
क्यों आँसू गैस से बहते हैं आँसू गणतंत्र राष्ट्र में! 
 
दृश्य कुछ ऐसा है
आम आदमी गवाह बना है
अमीरों की भूख पेट से दिमाग़ तक बढ़ती
ग़रीबों की भूख पेट से खेतों तक बढ़ती
ऐसी भूख कभी शांत नहीं होती . . . 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

कहानी

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं