कोई मुँह छिपाता नहीं
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया1 Aug 2023 (अंक: 234, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
सुना है चाँद का
उग आया है एक नया चहेरा
कुरूप काला चहेरा है बड़ा डरावना
छोड़ चुकी है उसे उजली चाँदनी
काला पड़ गया है चाँद
सुना है रात में अब दृष्टिगोचर नहीं होता
जिनका मन है उजला इंसानियत से भरा
करुणा और प्रेम से लबालब
जो देवता मान चाँद को पूजते थे
सुना है चाँद को सिरमौर किया था देवताओं के
अलग-अलग मान्यताओं के ठेकेदारों ने
आदम से जब उनके क़द थे छोटे
अब ठेकेदारों ने बढ़ा लिए हैं क़द
सियासी ताक़तों के साथ मिलकर
आसमान को भेद निकले हैं आगे
सुना है धरती के लोगों ने इनका क़द देख
वरण किया इनका, अंधे बुद्धिहीन हो
अब बचे हैं उनके खोखले शरीर आत्मा रहित
उनकी जलती हुई आत्माएँ कूच कर गईं
धरती से आसमान तक फैल गया धुआँ काला
जल गया चाँद का उजला मुखड़ा
सुना है अब चाँद भी नज़र आने लगा है
दिन में अपने नए काले चहेरे के साथ औ'
दिन में कोई भी अब मुँह नहीं छिपाता
दिन लगता है रात-सा सना है काले धुएँ से
खोखले शरीर काठ के आत्मा रहित
काले पड़ सुलग रहे हैं
अब उठने लगा है धुआँ उनमें से भी
सुना है धरती पर लोगों ने कहना छोड़ दिया है
तुम बहुत सुंदर लगते हो . . .
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