अनुभव
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
अनुभव क्या मेरा अपना है
अनुभव कुछ पिता का, दादा का
दुनिया ने कुछ सौग़ात में दिया
कुछ माँ भी समेट लाई थी मायके से
बचपन का अनुभव मीठा-मीठा
रसगुल्ले-सा मुँह में जाते घुल गया
युवावस्था में प्रेमरोग लगा
गृहस्थी की सिगड़ी में झोंक गया
आटे-दाल के भाव रटा गया
सपनों के तानों-बानो में उलझा गया
कुछ अपना, कुछ पराया अनुभव ऐसा
दो पाटों में आटा-घुन पिसते वैसा
अनुभवों की दुनिया में फूल खिले
सोचा लौट आया मीठा बचपन
भूल कर बैठे बिना धूप सफ़ेदी छाई
रसगुल्ला नहीं निमोड़ी के फूल थे
उम्र बीत रही, झुर्रियाँ चढ़ आई
अनुभवों की क़िताब अब भी खुली है
राम-राम करते हर अध्याय पढ़ते
परीक्षा कठिन किताब मोटी है . . .
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अधूरे संकल्प
- अनुभव
- आज़ादी का दिन
- इतनी-सी बात है
- ऊर्जा
- औरत देवी स्वरूप
- किसी दिन
- कोई मुँह छिपाता नहीं
- चार दृश्य
- ज़िन्दगी के चार पाए
- जीवन का शून्य
- तेरे भीतर मेरे भीतर
- थोड़ी उलझन
- धुँधला मनस्मृतियों में
- नमक दिलों में
- निज सन्नाटा
- पराक्रम की गाथा
- मन में राम
- मेरा मन समुन्दर बना
- मेरे अश्रु नहीं बेमोल
- मेहँदी
- रोशनी में आओ
- सपने की तलाश
- सफ़र
- ज़्यादा गुमान ठीक नहीं
कहानी
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं