तेरे भीतर मेरे भीतर
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
सब कुछ मेरे भीतर ही छिपा बैठा था
वह ग़म, हँसीं, ख़ुशी, मस्ती, चाहें, राहें,
एहसास, तपिश, रंजिश, वादे, बेवफ़ाई,
फिर ढूँढ़ा मैंने तेरे भीतर भी मैं ही था
प्यार तो होना ही था तुमसे उस दिन
तुम्हें पाया तेरे भीतर भी मैं ही तो था
बढ़ीं मुलाक़ातें साथ साथ दिन-रातें
कई वादे-बातें, मैं हुआ मुग्ध तुम पर
पूरब में उगता सूरज डूबता पश्चिम में
शाम की मद्धिम रौशनी में आस जगती
चाँद नज़र आएगा तुम मेरा चाँद बन
मेरे संग बैठी उसे निहारोगी, मैं तुम्हें
कहते-कहते मैं अचानक कुछ न कहता
तुम कुछ कहती मैं लबों से रोक लेता
भीतर तुम्हारे और भीतर मैं उतर आया
तुम्हारे भीतर तुम थी, मैं भी था अनजान
पास-पास दूरियाँ बनीं नदी के किनारे
वह ग़म, हँसीं, ख़ुशी, मस्ती, चाहें, राहें,
एहसास, तपिश, रंजिश, वादे, बेवफ़ाई,
फिर ढूँढा मैंने तुम्हारे भीतर मैं नदारद था
यूँ ही अचानक एक दिन याद आया
जब चाँद खिला था आसमान में
दिखा था तुम्हारा मुखड़ा चाँद में
मैंने ढूँढ़ा मेरे भीतर तुम थी मैं नदारद . . .
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