रोशनी में आओ
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
अँधेरों से निकल कर इस रोशनी में आओ
क्यों दुःख में तुम हो सिमटे
क्यों राह तुम हो भटके
थोड़ा मुस्कराओ, दो बोल गुनगुनाओ
आज़ादी का तोहफ़ा तो मिलता है सदियों में
गर्व से है सिर ऊँचा तुम्हारा
जीवन है ख़ुशियों का पिटारा
जिन्होंने जीवन किया शहीद
आज़ाद हिंद के लिए बन सपूत
दुःख, अँधेरों में जीवन उन्होंने बिताया
ये अहसान हैं उनके, फल पाया है हमने
अँधेरों से निकल कर इस रोशनी में आओ
थोड़ा मुस्कराओ, दो बोल गुनगुनाओ।
जात-पाँत, ऊँच-नीच, धर्म तेरा मेरा
उन मतवालों की शब्दावली में था नहीं
अँधेरों में मशाल जलाई सद्भावना की
शर्मिन्दा न हो जाए अपनी कुर्बानियों से
मुद्दे कई हैं, चुनौतियाँ पहाड़ भर
शक्ति तुम्हारी ही है देश का भविष्य
देश के युवा तुम सुलगते रहे पर
स्वार्थ परक नेता आराम से महलों में
रंगे सियारों को लाओ उनके असली रंग में
दिखाओ एकता का जनशक्ति अवतार
लोकतंत्र के मायने का सही अर्थ समझाओ
राह तुम्हारी हो सुगम शांतिप्रिय
तुम नानक, गौतम, गाँधी की संतान हो
भगत, सुभाष, शेखर का पुरुषार्थ तुममें
शक्तिवान! हो शक्ति का आभास
भाईचारे, प्रेम का भी हो ज्ञान तुम्हें
अँधेरों से निकल कर इस रोशनी में आओ
थोड़ा मुस्कराओ, भाईचारे के बोल गुनगुनाओ!!
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