नमक दिलों में
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
आज नमक कुछ ज़्यादा है दिलों में
उम्र बढ़ने का तक़ाज़ा बदल गया
मिठास अब किसी को पचती नहीं
बचपन को मीठे से परहेज़ बहुत है
तकनीकी घुल गयी है ज़िंदगियों में
समस्याओं के पहाड़ ढह जाते पलों में
चुटकियों में मिल जाते नमकीन हल
अनुभवों की मिठास के कड़वे लगते पल
दिल फ़िदा हो रहे नमकीन जिस्मों पर
समुद्र की रेत पर लुढ़कते मनों पर
लुका-छिपा मीठा इश्क़ फ़ना हो गया
इबादत प्यार की बदले ज़माना हो गया
अब रिश्ते निभते हैं उपकरणों पर जमकर
घर की दहलीज़ों को लाँघना अशिष्टता
दिलों की दहलीज़ें लाँघ लेते हर रोज़
आड़े-टेढ़े इमोजी खारी-खारी मस्तियाँ
कभी चाँद तारे देख अचंभित होते मन
विस्मय के पंख लगा चाशनी में डूबे मन
हक़ीक़त का खारापन अब सच में पता है
कल्पनाओं के पटल पर चाँद बदला है
नदियाँ, बारिशें देखो हो गयीं नमकीन
बर्फ़ को पिघलाती कर रही धरा से दूर
पानी की अब वो मिठास भी विलुप्त हो रही
अधिक जानकारी माहौल को नमकीन कर रही
इच्छा-अनिच्छा से बदल गया जीवन चलन
अधिक मिठास रक्त में बहती बीमारी बन
नए मिठास के रूपों के बाज़ार नमकीन
ऊँचे दाम, नमक से दोस्ती बन जाती माँग
अधिक मिठास बोली में लगता फुसला रहा है
अधिक मिठास दिल में लगता मतलब पड़ा है
अधिक मिठास व्यवहार में लगता लालच कोई है
शक की सुई से बच जाता नमकीन दिलवाला
धरती की मिट्टी की सौंधी मिठास भी बदल
अब खारी हो गयी है लोलुपता में सबकी
कहीं ख़ून, कहीं पसीना अधिक बह रहा
नमक दिलों में, जीवन का स्वरूप बदल रहा!
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