मन में राम
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मेरे देश में राम मेला है
रंगीन अयोध्या
राममय हो जगमगा रही
वातावरण डूबा है भक्ति में
वर्तमान बदला है सदियों में
इतिहास में दर्ज़ हुआ
यह नहीं थी लड़ाई कोरी
वाद-विवाद, अपवाद!
अन्याय के विरुद्ध उठे थे स्वर
स्वर संगठित होने के फिर से
स्वर एकजुट होकर
न्याय के संग होने के
अस्तित्व, मान, स्वाभिमान को
सम्मानपूर्वक ग्रहण करने के!
जीने का हक़ सभी को समान हो
शान्ति, आस्था और स्वाभिमान
सब के लिए समान हो
धर्म दिखाएँ सही राह
अधर्म अपवाद हों
धर्म वही जो धारण कर सके
नव मानवता के लिए
कुछ शब्दों के बोलों से
चंद भावुक प्रवचनों से
न मिट सकेगा कल का इतिहास
सफ़ेद हो या श्याम
न बदल सकेगा गुज़रा वक़्त
वह जो बीत चुका है
किरचों को कुरेदने से बारबार
नासूर बन दाग़ पड़ते बारबार
मानवता के सीने पर
धुल न पाते फिर कभी वह
हिंसा और रक्त से
जो बदल रहा है
जो सँभल रहा है
शुभ हो मानवता के लिए
कोरे अहंकार, झूठी शान से परे
आज शुभ हवाओं ने आ घेरा है
बन रही गवाह हैं
शुभ समय, शुभ नव वर्ष
हो मंगलकारी
अमन, सौहार्द और भाईचारे की
सुदृढ़ राहें पग पथ हों
मन में हों राम, कर्मों में राम
जन जन के!
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