ज़्यादा गुमान ठीक नहीं
काव्य साहित्य | कविता रेखा भाटिया15 Feb 2023 (अंक: 223, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
इन बारिशों ने आज क्या सितम ढाया है
कहीं दिलों के मिलने से बरसी हैं आँखों से
कहीं दिलों की ज़मीनें दरकने से बहे हैं आँसू
कहीं कुछ, कहीं कुछ दरक-सरक गया होगा।
खिली धूप का गुमान था जिन्हें आज गया होगा
गए थे बादलों से मिन्नतें करने ढक लें सूरज को
बादलों ने किया होगा समझौता आज सूरज से
पिघल बरस ही जाते हैं खोने-पाने से परे।
कोई क़तरा दिल का दिल में ही रह गया होगा
शायद आँखों से बचता नज़रें चुरा गया होगा
दिलों की रेत में देख टूटे पड़े महल सपनों के
तरस खा मरहम लगाने दिल में रुक गया होगा।
कभी इन दिलों में भी आबाद था समुंदर मुहब्बत का
वक़्त के साथ सरकता ढूँढ़ लिया था ठिकाना दूसरा
रेत पर छूटे निशान मिट गए जब हवाएँ चली ज़ोर से
महबूब के हुस्न, ख़ुद के इश्क़ पर गुमान कर लिया था
एक ने प्यार में पड़ कर बेइंतहा हक़ जता लिया होगा
हक़ देने के बदले हठ ज़्यादा किया होगा ग़ुलाम मन से
दूसरे ने हक़ भी दिया होगा और ग़ुलामी भी प्यार की
प्यार के मौसम ने सितम ढाया गया होगा बारिशों संग!
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