दर्द भले कितना ही सहना
काव्य साहित्य | कविता प्रो. ऋषभदेव शर्मा1 Jul 2023 (अंक: 232, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
(तेवरी)
दर्द भले कितना ही सहना
झूठों को मत सच्चे कहना
कुर्सी तो आनी जानी है
अपराधी की ओर न रहना
वोटों की ख़ातिर सैंया जी
साँप पालते, सुन री बहना
वे मायावी मगरमच्छ हैं
आँसू में उनके मत बहना
यह जो ताशमहल रचते हो
निश्चित है इसका तो ढहना
लाक्षागृह तो बना रहे हो
पड़े न तुमको इसमें दहना
सुनो, न्याय का शासन केवल
लोकतंत्र का सच्चा गहना
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