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सत्य हुआ सत्ता का अनुचर, हर गंगे

 

(तेवरी)
 
सत्य हुआ सत्ता का अनुचर, हर गंगे
न्याय-व्याय की बातें मत कर, हर गंगे
 
नेत्र तीसरा बंद पड़ा है, वैसे तो
कंकर-कंकर में है शंकर, हर गंगे
 
राजधानियाँ भंग चढ़ाकर सोई हैं
खुले घूमते गुंडे-तस्कर, हर गंगे
 
राहु-केतु का ग्रास बन रही है जनता
पुण्य कमा लो वोट डालकर, हर गंगे
 
चार सीट दिल्ली की जिसकी मुट्ठी में
बच जाएगा सात ख़ून कर, हर गंगे
 
अब सड़कों पर मार रहे वे, रौंद रहे 
कब तक देखें पत्थर बनकर, हर गंगे
 
ढहते पुल, भिड़तीं रेलें, चलती गोली
जाँच हो रही, चिंता मत कर, हर गंगे
 
लोकतंत्र की छाती पर से बूट पहन
गुज़र रहा राजा का लश्कर, हर गंगे
 
ख़ुद लेने प्रतिकार देवियो! अब उतरो
ले जाए ना असुर उठाकर, हर गंगे

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