ख़ूब उल्लू बनाया
कथा साहित्य | कहानी स्नेहा सिंह1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
लखनऊ-प्रयागराज हाईवे पर एक ढाबे में टैक्सी ड्राइवर आकाश चाय-नाश्ता कर रहा था। तभी अचानक लगभग चौबीस साल की तेज़ क़दमों से दौड़ती हुई एक लड़की आरोही हाथ में सूटकेस लिए उसके पास आ कर बोली, “चलिए, लखनऊ जाना है?”
“ठीक है, बैठ जाइए। बाक़ी यात्री भी आ जाएँ तो चलेंगे,” आकाश ने चाय पीते हुए कहा।
थोड़ी देर बाद आरोही फिर बोली, “जल्दी कीजिए न, मुझे लखनऊ बहुत जल्दी पहुँचना है। गाड़ी स्टार्ट कीजिए।”
आकाश ने कहा, “मैडम, बाक़ी तीन सवारियों का किराया कौन देगा? आपके अकेले के किराए से तो पेट्रोल का ख़र्च भी नहीं निकलेगा। मेरा नुक़्सान हो जाएगा।”
“ठीक है, मैं सबका किराया दे दूँगी। बस, आप जल्दी चलिए।”
आरोही के इस लालच भरे प्रस्ताव और उसकी सुंदरता देख कर आकाश का मन डोल गया। अकेली लड़की के साथ लाँग ड्राइव का आनंद लेने की चाह में आकाश जल्दी से ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। उसके बैठते ही आरोही भी अकेली ही उसकी टैक्सी में बैठ गई। फिर तो गाड़ी लखनऊ की ओर दौड़ पड़ी।
दस मिनट दोनों ख़ामोश रहे। इसके बाद आकाश से रहा नहीं गया। उसने कहा, “मैडम, इतनी जल्दी क्या थी? कोई ज़रूरी काम है क्या?”
आरोही ने हल्की थकी आवाज़ में कहा, “मेरे मम्मी-पापा मेरी शादी बग़ल वाले गाँव के एक लड़के से करने पर अड़े हुए हैं। उस लड़के में न कोई दम है, न ही वह कोई ख़ास सुंदर ही है। पढ़ा भी आठवीं तक ही है। खेतों में काम करता है। मैं उससे शादी नहीं करना चाहती। इसलिए घर छोड़ कर लखनऊ जा रही हूँ।”
आरोही की बात सुन कर आकाश मन-ही-मन ख़ुश हुआ कि इतनी सुंदर लड़की अभी तक अविवाहित है। उसने पूछा, “लखनऊ में किस के घर जाएँगी?”
“अभी तो वहाँ मेरा कोई नहीं है। पर पहुँच कर कोई न कोई व्यवस्था कर ही लूँगी,” आरोही ने कहा।
“आप का नाम क्या है?” आकाश ने परिचय बढ़ाने की ग़रज़ से पूछा।
“मेरा नाम आरोही है। अब मुझे मैडम मत कहिएगा। मुझे सीधा मेरा नाम ले कर आरोही कहिएगा और आप का नाम क्या है?”
“मेरा नाम आकाश है। मैं एम.ए. तक पढ़ा हूँ,” आकाश ने गर्व से कहा।
“अरे वाह, आकाशजी एम.ए. तक पढ़ाई कर के भी आप टैक्सी चलाते हैं? टैक्सी चला कर कितनी कमाई कर लेते हैं?”
आकाश ख़ुश हो कर बोला, “यह काम तो मैं शौक़िया करता हूँ। मुझे लंबी ड्राइव पर जाना, बुज़ुर्ग और बीमार यात्रियों की मदद करना अच्छा लगता है। इससे नौकरी से भी दोगुनी कमाई हो जाती है।”
“वाह, दोगनी कमाई!” आरोही प्रभावित हो उठी।
“आप भी मुझे बस आकाश कह सकती हैं,” आकाश ने कहा।
आरोही ने सहजता से पूछा, “अच्छी कमाई है तो आप का रहन-सहन भी अच्छा होगा। आप के बच्चे कितने हैं?”
आकाश मुस्कुरा कर बोला, “अभी मेरी शादी ही नहीं हुई है तो बच्चे कहाँ से होंगे। मम्मी-पापा के साथ निशातगंज के फ़्लैट में रहता हूँ।”
दोनों को पता चल चुका था कि वे अविवाहित हैं। टैक्सी हाईवे पर तेज़ी से दौड़ रही थी। रायबरेली के साई नदी पर बने पुल पर पहुँचते ही आरोही ने कहा “चलो, यहाँ किसी रेस्टोरेंट में चाय-नाश्ता कर लेते हैं?”
आकाश मन-ही-मन फूला नहीं समाया। सिविल लाइंस के एक बढ़िया रेस्टोरेंट बाबा ढाबा के सामने उसने टैक्सी रोक दी। आरोही ने गर्म समोसे और चाय का ऑर्डर दिया।
वह समोसे की प्लेट उठा कर आकाश को देने लगी तो उसका हाथ आकाश के हाथ से छू गया। आकाश का चेहरा लाल हो गया और धड़कन तेज़ हो गई। आरोही भी शरमा गई।
जब बिल आया तो वह मोबाइल निकाल कर पैसे देने लगी तो आकाश ने तुरंत जेब से पैसे निकाल देते हुए कहा, “आप रहने दीजिए, मैं पेमेंट किए देता हूँ।”
“थैंक यू।”
आरोही के इस एक शब्द ने आकाश के दिल की घंटियाँ बजा दीं। लखनऊ की ओर गाड़ी फिर दौड़ने लगी। पीछे की सीट पर बैठी आरोही ने कहा, “आकाश, मैं आगे बैठ सकती हूँ क्या?”
“ह-हाँ, हाँ क्यों नहीं।”
आकाश ने गाड़ी रोक दी तो वह आगे की सीट पर आ कर बैठ गई। अब आरोही बीच-बीच में जान-बूझ कर गियर पर हाथ रख देती, ताकि आकाश के हाथ से उसका स्पर्श हो जाए। आकाश तो सपनों की दुनिया में पहुँच चुका था, हनीमून, गोवा, शिमला, कल्पनाओं की दुनिया में वह उड़ रहा था। रात हो चुकी थी। टैक्सी जब लखनऊ के गोमतीनगर चौराहे पर पहुँची तो आरोही ने आकाश से उतारने को कहा। टैक्सी से उतर कर आरोही ने कहा, “यहाँ कहीं एटीएम होगा?”
“क्यों?” आकाश ने पूछा।
“बाक़ी तीन सवारियों का भी तो किराया देना होगा न?”
आकाश प्रेम से बोला, “मैंने आप से कब पैसे माँगे हैं? अब यह घर की बात है। आप बस अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए। जब कभी मौक़ा मिलेगा, मिलते रहेंगे।”
आरोही ने प्यार से कहा, “सच में किराया नहीं लोगे?”
फिर एक काग़ज़ पर अपना नंबर लिख कर आकाश को थमा कर गोमतीनगर की ओर चली गई। आकाश प्रेमभरी नज़रों से उसे जाते हुए ताकता रहा। तभी उसकी नज़र सीट पर पड़े एक लिफ़ाफ़े पर पड़ी। वह फुसफुसाया, ‘अरे, इसे तो आरोही भूल गई।’
उसने तुरंत आरोही द्वारा दिया नंबर मिलाया, “हेलो, आरोही?”
सामने से आवाज़ आई, “तेजालाल बोल रहा हूँ, कौन?”
“आरोही से बात कराइए।”
“ग़लत नंबर है! यहाँ कोई आरोहीवारोही नहीं है।”
आकाश चौंका। उसने दो मिनट बाद फिर नंबर मिलाया, “आरोही . . . “
“कहा न, ग़लत नंबर है। दोबारा फोन किया तो कान उमेठ दूँगा।” तेजालाल तमतमा गया।
आकाश डर गया। उसने लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर एक चिट्ठी थी, “गरम समोसे-चाय और लखनऊ तक लिफ़्ट मज़ेदार रही। इसके लिए धन्यवाद। ख़ूब उल्लू बनाया न?”
आकाश पत्थर बन कर खड़ा रहा।
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