मेरी अभिलाषा
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
आज मैं बतलाता हूँ तुमको
अपने मन की अभिलाषा
जग में ज्ञान का अलख जगाऊँ
ऐसा शिक्षक बन पाता।
निर्माण करूँ ऐसे मानव का
पीर पराई समझे जो
ना समझे बस लिखित ज्ञान को
मन के भाव भी समझे जो
शिक्षा को सच्चे अर्थों में
परिभाषित जो कर पाता।
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता।
शिक्षा को व्यापार बनाकर
दूषित कभी ना होने देता
वरन् उसे हर घर हर बस्ती
सब बच्चों तक पहुँचाता।
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता।
शिक्षा का क्या मोल है जग में
यह मैं सब को बतलाता
यूँ ही नहीं एक शिक्षक को
कहते देश का निर्माता।
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता।
विविध अनोखे रंग सँजोए
है अपनी अनमोल धरा
अपनी इस अमूल्य संस्कृति को
संरक्षित में कर पाता।
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता।
वीर भगत सिंह और सुभाष की
अमर वीरता का वर्णन कर
युवा शक्ति में देश प्रेम के
भावों को मैं भर पाता।
ऐसा शिक्षक बन पाता।
शिक्षक होता है एक माली
ज्ञान की खिलती बग़िया का
उसके ज्ञान की किरणों से
हर पौधा विकसित हो पाता।
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अपने लिए भी वक़्त निकालो
- आँगन की गौरैया
- उस दिन नई सुबह होगी
- एक स्त्री की मर्यादा
- क्यूँ ना थोड़ा अलग बना जाए
- चिट्ठियाँ
- जब माँ काम पर जाती है
- दीप तुम यूँ ही जलते जाना
- नीम का वो पेड़
- बेटे भी बेटियों से कम नहीं होते
- माँ नहीं बदली
- माँ मैं तुमसी लगने लगी
- मेरी अभिलाषा
- मज़दूर की परिभाषा
- ये आँखें तरसती हैं
- रामायण
- वो नारी है
- सपने
- सर्दियों की धूप
- स्त्री का ख़ालीपन
- हमारा गौरव
- ग़लतियाँ
- ज़िन्दगी की दास्तान
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं