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मेरी अभिलाषा

आज मैं बतलाता हूँ तुमको
अपने मन की अभिलाषा
जग में ज्ञान का अलख जगाऊँ
ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
निर्माण करूँ ऐसे मानव का
पीर पराई समझे जो
ना समझे बस लिखित ज्ञान को
मन के भाव भी समझे जो
शिक्षा को सच्चे अर्थों में
परिभाषित जो कर पाता। 
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
शिक्षा को व्यापार बनाकर
दूषित कभी ना होने देता
वरन्‌ उसे हर घर हर बस्ती
सब बच्चों तक पहुँचाता। 
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
शिक्षा का क्या मोल है जग में
यह मैं सब को बतलाता
यूँ ही नहीं एक शिक्षक को
कहते देश का निर्माता। 
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
विविध अनोखे रंग सँजोए
है अपनी अनमोल धरा
अपनी इस अमूल्य संस्कृति को
संरक्षित में कर पाता। 
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
वीर भगत सिंह और सुभाष की
अमर वीरता का वर्णन कर
युवा शक्ति में देश प्रेम के
भावों को मैं भर पाता। 
ऐसा शिक्षक बन पाता। 
 
शिक्षक होता है एक माली
ज्ञान की खिलती बग़िया का
उसके ज्ञान की किरणों से
हर पौधा विकसित हो पाता। 
मैं ऐसा शिक्षक बन पाता। 

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