वो नारी है
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
वो नारी है।
मर्यादा को तन पर लपेटे
मर्यादा का घूँघट ओढ़े
फिर भी हर मर्यादा पर भारी है।
वो नारी है।
समग्र परिवार की ज़रूरत
शालीनता की जीती जागती मूरत
पूरी करती हर ज़िम्मेदारी है।
वो नारी है।
संस्कारों को सँभाले हुए
हर साँचे में ख़ुद को ढाले हुए
अपने अंतर्मन से संघर्ष जारी है।
वो नारी है।
कभी बेटी कभी बहन कभी पत्नी कभी माँ है वह।
इन्हीं रिश्तों में उसकी दुनिया सारी है।
वो नारी है।
कहा जाता है
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता
अब इस को चरितार्थ करने की बारी है।
वो नारी है।
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