अपने लिए भी वक़्त निकालो
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Mar 2024 (अंक: 249, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मन की सरगम के सात सुरों को
इक बार ज़रा इक साथ मिला लो
छोड़ो सब ज़रूरी काम काज
अपने लिए भी वक़्त निकालो।
कभी-कभी ज़रा शांत बैठकर
ख़ुद से भी दो बातें कर लो,
सबके लिए तो करते ही हो
अपने लिए भी तो कुछ कर लो।
छोड़-छाड़ दुनिया की चिंता
ख़ुद को ख़ुद से भी मिलवालो
अपने लिए भी वक़्त निकालो।
यूँ ही वक़्त निकल जायेगा
फिर ये लौटकर ना आएगा
पछताते बस रह जाओगे
वक़्त का पंछी उड़ जायेगा।
जब तक जीवन में यौवन है,
उसका थोड़ा लुत्फ़ उठा लो
अपने लिए भी वक़्त निकालो।
जिसमें मन को संतुष्टि हो
ऐसे भी कुछ काम करो
जब बिलकुल भी मन ना चाहे
तब थोड़ा आराम करो।
छोड़ो ज़्यादा आपा धापी
संतुलन जीवन में बिठा लो
अपने लिए भी वक़्त निकालो।
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