नीम का वो पेड़
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
याद आता है वह गाँव का नीम का पेड़।
वो ठंडी छाँव में बैठना उसका।
हरी-भरी नई कोंपलें जब
फूटती थी शाखों पर उसकी
वो चिड़ियों का चहचहाना
वो कोयल का मधुर गाना
घोलता था कानों में मिश्री ऐसे
कोई वादक बाँसुरी बजा रहा हो जैसे।
वहीं चौपाल में बड़े बुज़ुर्गों का आना
वो उनकी हँसी ठिठोली
और बातों का ताना-बाना।
वही क़िस्से कहानी
और बातें पुरानी
याद करते थे सब
अपना बचपन और जवानी।
वह हुक्के की गड़गड़ाहट और
बच्चों की हँसी का गुंजन
याद आ जाता है जैसे
मुझको मेरा बचपन।
आज देखता हूँ अपने चारों ओर
न नीम का वह पेड़ है
ना वह बच्चे और बूढ़े
सभी बंद है घरों मेंअकेले
अपने ही रिश्तों में सिमटे।
काश लौट आए वो बचपन का ज़माना
बूढ़े नीम की छाँव और
सबका खिलखिलाना।
काश लौट आए वो बचपन का ज़माना।
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