रामायण
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
शिक्षा देती हमको रामायण
संस्कार सिखलाती है।
नैतिकता और सदाचार का
पाठ सदा ही पढ़ाती है।
राज छोड़ बन गए राम ने
पितु आज्ञा सिरधारी थी
उधर भरत ने भ्रात प्रेम में
सिंहासन को ठोकर मारी थी।
आदर्श भाई का फ़र्ज़ निभाकर
लखन चले राम के साथ
सीता ने भी सुखों को त्यागा
बन गई पति के साथ।
हनुमत जैसी सच्ची निष्ठा
कहीं किसी में ना पाई
राम के परम भक्त कहाए
हृदय में बसे सदा रघुराई।
राजा राम के आदर्शों का
प्रतिबिंब हमारी रामायण है
जिसमें धर्म के आदर्शों को
साकार करते नारायण हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अपने लिए भी वक़्त निकालो
- आँगन की गौरैया
- उस दिन नई सुबह होगी
- एक स्त्री की मर्यादा
- क्यूँ ना थोड़ा अलग बना जाए
- चिट्ठियाँ
- जब माँ काम पर जाती है
- दीप तुम यूँ ही जलते जाना
- नीम का वो पेड़
- बेटे भी बेटियों से कम नहीं होते
- माँ नहीं बदली
- माँ मैं तुमसी लगने लगी
- मेरी अभिलाषा
- मज़दूर की परिभाषा
- ये आँखें तरसती हैं
- रामायण
- वो नारी है
- सपने
- सर्दियों की धूप
- स्त्री का ख़ालीपन
- हमारा गौरव
- ग़लतियाँ
- ज़िन्दगी की दास्तान
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं