ग़लतियाँ
काव्य साहित्य | कविता दीपमाला15 Jul 2023 (अंक: 233, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
अक़्सर ग़लती को ग़लत समझते हैं हम
पर क्या वास्तव में ग़लत होती हैं ग़लतियाँ?
अगर ग़लती ना हो तो
क्या समझ पाएँगे हम?
अगर ग़लती ना हो
तो क्या सीख पाएँगे हम?
ग़लती तो सबक़ है
जीवन जीने का।
ग़लती तो कुछ पन्ने हैं
जीवन की किताब के।
इन कुछ पन्नों में
सार है जीवन का।
ग़लती ही है जो हमें
सुधारती और सँवारती है।
ग़लती अंत नहीं, आरंभ है
कुछ नया सीखने का।
ख़ुद को संशोधित और
परिमार्जित करने का।
यूँ ही नहीं पहुँचता
व्यक्ति बुलंदियों पर
यह ग़लतियाँ ही नींव का पत्थर
बनती हैं उसकी सफलता में।
कैसे दे पाता कुम्हार,
घड़े को सही आकार
अगर हुई ना होती
उससे ग़लतियाँ?
प्रयास और भूल ये दो
अनन्य पहलू हैं जीवन के
जिन से ही बढ़ता है
एक मनुष्य पूर्णता की ओर।
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