मुक्त नहीं है वातावरण...
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत मनोज शाह 'मानस'1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण।
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण॥
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!!
ये सूनापन का शूल,
और छाती की धड़कन।
अभी भी याद है वह,
देखा हुआ अबोध स्वपन॥
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन।
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन॥
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण।
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण॥
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!!
गीत कविता सिर्फ़ नज़रों का नयन।
प्यासा ही रहा मेरा श्वास का पवन॥
ये ज़हरीला बन चुका है पवन।
ये ज़हरीला बन चुका है पवन॥
घूमने का ख़्याल मृत्यु की कंपन।
घूमने का ख़्याल मृत्यु की कंपन॥
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन।
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन॥
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण।
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण॥
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!!
ख़ाली आकाश में एक सूनापन।
सिर्फ़ क़ातिल हवाओं का है भ्रमण॥
ख़ाली ही रह गया मेरा अंतःकरण।
ख़ाली ही रह गया मेरा अंतःकरण॥
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन।
कभी इस संशय में कभी,
उस संशय में मेरा मन॥
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण।
मुक्त नहीं है बाहर का कोई वातावरण॥
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!
ज़िंदगी से ज़िंदगी का नाता हरण ...!!!
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