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अपने–पराये

अपने पूर्वजों से आशीर्वाद लेना चाहता हूँ। 
अपने संतानों को आशीर्वाद देना चाहता हूँ॥
 
काश! 
ये लफ़्ज़ है अपने में
कितना अर्थ पूर्ण
और किस क़द्र अधूरा
गूढ़ रहस्य समेटे हुए। 
 
इक कसक 
इक तड़प और
बेचैनी लिए हुए॥
 
बढ़ते हैं क़दम जब 
चेतावनी बन
मुड़ मुड़कर पीछे देखते हैं। 
काश! 
फिर ना जगह अपनी बना ले॥
 
अपनों के साथ वक़्त का 
पता चले ना चले, 
वक़्त बता देता है, 
कि कौन अपना है 
कौन पराया। 
 
ये सच है कि अपनों के साथ 
वक़्त का पता नहीं चलता। 
लेकिन यह भी सच है कि 
वक़्त के साथ ही अपनों का 
पता चलता है॥
 
ए मेरे ख़ुदा! 
फिर क्यों लगता हूँ मैं 
तुमको पराया और ग़ैर? 
क्या मैं उम्र भर भ्रम में रहूँ। 
आग़ोश ए तसव्वुर के लिए तरसूँ॥
 
आज क्यों हुआ वो शहर पराया। 
अपनों ने अपनों से दूर किया॥
 
आख़िर अपना पराया क्या है? 
मुझे तो बस यही पता है, 
जो भावनाओं को समझे वो अपना 
और जो भावनाओं से परे हो वो पराया॥

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