पहले प्रिया थी . . .
काव्य साहित्य | कविता मनोज शाह 'मानस'15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
पहले प्रिया थी . . .
लेकिन प्यार नहीं था!
अब प्यार है . . .
लेकिन प्रिया नहीं है . . .!!
दूर और दूर . . .
बहुत दूर है!
मैं तो पहले भी था . . .
अभी भी हूँ!
इंतज़ार कर रहा हूँ . . .
हाथ फैलाकर प्यार के लिए!
कभी कभी बहुत उदास लगता है।
सोचता हूँ . . .
बहुत सोचता हूँ!
मेरी सोच . . . , मेरे भीतर ही . . . ,
सड़ने लग जाती है!
छटपटाने लग जाती है . . .!!
जब दिल होता है तो प्रिया नहीं होती!
जब प्रिया होती है तो दिल नहीं होता!!
या इस तरह . . . ,
दिल हुआ जवां तो प्रिया न हुई जवां!
प्रिया हुई जवां तो दिल न रहा जवां!!
यह दिल और प्रिया की . . . ,
विचित्र विडम्बना है . . .!!!!
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