परिवर्तन . . .
काव्य साहित्य | कविता मनोज शाह 'मानस'15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मैं सोचता हूँ . . .
वास्तव में समय कितना
परिवर्तनशील होता है . . .
समय सभी नई सृजना को
पुराना बना देता है . . .
बदल देता है . . .
जंग लगा देता है . . .
घिसते घिसते
जीर्ण बना देता है . . .
लेकिन . . .
आदमी अपने हृदय के
भीतर कोई भी तस्वीर
या यादें सँभालकर रखता है तो . . .
वह कभी नहीं बदलता . . .
जैसे . . .
‘मैं . . .’ और मेरे भीतर का ‘वो . . .’
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