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श्वेत कमल

सब लोग मरघट पर जा मरणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी॥
सब लोग मरघट पर जा मरणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी॥
 
बहारों की तमन्ना किसे नहीं, 
जन्नत का सपना किसे नहीं। 
जग में सब बनते हैं सयाना, 
अमृत पान करना किसे नहीं॥
 
चाहिए एक तरफ़ा नज़ारा हमें भी, 
दे सुख ही सुख! ले दुःख हरणी। 
सब लोग मरघट पर जा मरणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी॥
 
किन्तु मानव मैं भगवान कहाँ . . ., 
सुख मिले सिर्फ़, इतना महान कहाँ। 
सुख शान्ति में मग्न रहूँ हमेशा, 
इतना है अन्तर ध्यान कहाँ . . .। 
 
है इतना अन्तर ध्यान कहाँ? 
सुख शान्ति की करूँ करणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी। 
सब लोग मरघट पर जा मरणी॥
 
मानव में मानवता की समावेश हो तो, 
मानव की कहीं एक ऐसी देश हो तो। 
जहाँ नव मानव में नव चेतना की, 
मानव पथ पद अंशों का प्रवेश हो तो॥
 
कभी भटक जाऊँ अपने कर्मों पर, 
कि जैसी करणी वैसी भरणी . . . 
काश! श्वेत कमल कर धरणी। 
सब लोग मरघट पर जा मरणी॥
 
कभी भटकूँ अतीत में कभी भविष्य में, 
गिनती करूँ स्वयं को लघु शिष्य में . . .
अलौकिक वर्तमान की ख़बर कहाँ, 
कभी इस संशय में कभी उस संशय में॥
 
मैं भी सोचूँ ख़ूब सोचकर मनु, 
अब सोचने की वक़्त कहाँ हिरणी। 
सब लोग मरघट पर जा मरणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी॥
 
काश! श्वेत कमल कर धरणी, 
हो जाए सिन्धु तट पर मरणी। 
मरघट के बदले हो अमृत घट, 
ऐसी पुण्य की है . . .? हे हिरणी॥
 
किन्तु जन्मा इसी मृत्य लोक में, 
मैं मृत्यवासी मरघट पर जाऊँ मरणी। 
कहाँ पाऊँ श्वेत कमल कर धरणी, 
कहाँ पाऊँ श्वेत कमल कर धरणी॥
 
सब लोग मरघट पर जा मरणी। 
काश! श्वेत कमल कर धरणी॥

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