सचमुच चौकीदार हूँ . . .!
काव्य साहित्य | कविता मनोज शाह 'मानस'1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
बारह घंटे दिन में
बारह घंटे रात में तैनात
पाता सिर्फ़ बारह हज़ार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
द्वार पर ही रहना
द्वार पर ही खाना
द्वार का सुरक्षा कर्तव्य
द्वार का द्वारपाल
द्वार का ही दुनिया संसार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
कोई अवकाश नहीं
कोई पर्व त्यौहार नहीं
तीन सौ पैंसठ दिन तैनात
ड्यूटी पर ही मनाता त्यौहार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
हमेशा सुरक्षा करूँ
जनहित की रक्षा करूँ
दफ़्तर में दरबान
आलीशान बँगले में गार्ड
कंपनी में चौकीदार
ठेकेदार का हुंकार
मालिक से लाचार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
गर्मी में हो या सर्दी में
हमेशा रहूँ वर्दी में
कभी सोचा नहीं मेरा वतन
क्या है मेरा न्यूनतम वेतन
राज्य सरकार, केंद्र दरबार, राज्यपाल
एक दूसरे पर फेंकते रहे फ़ाइल
जीवंत हूँ फ़ाइलों में वार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
अपनी निजी स्वार्थों के लिए
आ जाए ओच्छी स्तर पर
कभी देखा नहीं हमारा आर्थिक स्तर
संपूर्ण हिंदुस्तान के सुरक्षाकर्मी को चोर बनाया
मोटर गाड़ी चलते यह दो-चार
लड़ते मरते हम पचीस लाख चौकीदार!
देश में विवश लाचार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
पार्थ अकेला खड़ा है
भारतवर्ष बचाने को
सभी कौरव साथ खड़े हैं
केवल उसे हराने को
मैं धर्म युद्ध के साथ हूँ
मैं भी चौकीदार हूँ!
चौकीदार हूँ सचमुच चौकीदार हूँ!!
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