तुम्हारा ही ख़्याल
काव्य साहित्य | कविता मनोज शाह 'मानस'15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
और क्या सुनाऊँ हाल,
और क्या बताउँ बात
बस ज़ेहन में है,
तुम्हारा ही ख़्याल
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ,
तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
अपनी तक़दीर कोसता हूँ
काश तुम होती तो,
कितनी अच्छी होती ज़िन्दगी
कभी देखा नहीं,
कभी परखा नहीं
ख़्यालों में ही आती रही
मीलों दूर रहकर,
रहगुज़र, रहबर
ख़्वाबों में ही सताती रही
और क्या सुनाऊँ हाल
ज़ेहन में तुम्हारा ही ख्याल
तुम्हारा अपना जहां मेरा अपना जहां है
मेरी ज़मीं है तो तुम्हारा आसमां है
हम मिल सकते नहीं किसी भी घड़ी
आओ प्यार की बातें करें घड़ी दो घड़ी
और क्या सुनाऊँ हाल
ज़ेहन में तुम्हारा ही ख्याल
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