सदा सुखी रहो बेटा
कथा साहित्य | लघुकथा सुषमा दीक्षित शुक्ला15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
रिटायर्ड इनकम टैक्स ऑफ़िसर कृष्ण नारायण पांडे आज अपनी आलीशान कोठी में बहुत मायूसी महसूस कर रहे थे, क्योंकि उनकी दो हफ़्ते से बीमार पत्नी सुलोचना की तबीयत आज कुछ ज़्यादा ही ख़राब लग रही थी और ऊपर से आस्ट्रेलिया में नौकरी के कारण जा बसा इकलौता बेटा रंजन उर्फ बबलू पिता के बार-बार फोन करने पर भी फोन नहीं उठा रहा था।
कृष्ण नारायण पांडे अजीब कशमकश में इधर से उधर चहलक़दमी कर रहे थे। वह अपनी बीमार पत्नी को लेकर अत्यंत चिंतित थे।
रंजन की बुज़ुर्ग माँ की स्थित सही नहीं थी वह अपने पति से बार-बार अपने आँखों के तारे बबलू को देखने की इच्छा जता रही थीं। उन्हें लग रहा था कि वह बहुत जल्द परिवार से, संसार से विदाई लेने वाली हैं।
सुलोचना की साँस की बीमारी तो पुरानी ही थी परन्तु इस बार कई दिनों से तबियत ठीक नहीं हो पा रही थी बल्कि अच्छे डॉक्टर के इलाज के बाबजूद सुधार नहीं हो सका।
अनहोनी की आशंका से उनके आँसू थम नहीं रहे थे। वह सोच रही थी कि उनके बाद उनके पति का ख़याल कौन रखेगा?
बीमार पत्नी की दशा देख बेचारे बुज़ुर्ग कृष्ण नारायण भी अत्यंत दुःखी थे।
तभी अचानक सुलोचना पूरी शक्ति लगाकर बड़बड़ाई, "बबलू . . . ओ बबलू . . ."
फिर चुप हो गई . . . उसके बाद पति से कहा, "सुनो जी, वीडियो कॉल से ही बेटे को दिखा दीजिए मुझे उसकी याद बहुत आ रही है।"
कृष्ण नारायण जी ने वीडियो कॉल लगाया लेकिन अफ़सोस . . . कॉल रिसीव नहीं हुई। वह बेहद मायूस होकर अपनी पत्नी को ढाँढस बँधाने लग कि कहीं बिज़ी हो गया होगा, शाम तक तो फोन उठा लेगा, तुम परेशान मत हो, ठीक हो जाओगी। ऐसा कहकर कृष्ण नारायण ने डॉक्टर को फोन लगाकर अपने घर आने का निवेदन किया।
तभी सुलोचना बोली, "सुनो जी, ऐसा लगता है कि अब तो तुम्हें अकेले ही रहना होगा शायद मेरी विदाई का वक़्त जो आ गया, मेरी तबीयत जवाब दे रही है। सुनो . . . मेरी अलमारी में पुराना सीतारामी हार रखा है, वह बहू को मेरी अंतिम गिफ़्ट के रूप में दे देना और जब बबलू आए तो उसे मावे की कचौड़ी बनाकर ज़रूर खिला देना, जो उस दिन मैंने तुम्हें बनानी सिखाई थी . . . क्योंकि बबलू हमेशा घर आकर मेरे हाथ के मावे की कचोरी ही माँगता है और कहना . . . माँ बहुत याद कर रही थी और कहना . . . वह आपको अपने साथ ले जाए या यहीं अपने देश में कोई जॉब कर ले और हाँ यह भी कहना कि . . .! कहते-कहते अचानक सुलोचना की आवाज़ थम सी गयी, उनके अधूरे लफ़्ज़ हवा में खो गए।
जब तक डॉक्टर साहब पहुँचे सुलोचना अनन्त राह पर चली गईं थीं।
बेचारे बुज़ुर्ग कृष्ण नारायण पांडेय ने अपनी बीमार पत्नी को, परदेसी पुत्र के वियोग में मरते देखा था, वह अत्यंत दुःख से विलाप करते करते गश खाकर गिर पड़े!
उधर ऑस्ट्रेलिया में अगले दिन कृष्ण नारायण और सुलोचना के आँखों के तारे, बुढ़ापे के एक मात्र सहारे, रंजन ने मोबाइल पर अपने पिता का मैसेज पढ़ा . . . बेटा तुम्हारी माँ का अंतिम संस्कार हो चुका है . . . तुम्हारे लिए कल उनका एक संदेश जो अधूरा रह गया था . . . वह भेज रहा हूँ . . . सदा सुखी रहो बेटा . . . !
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