सच्चा श्राद्ध
काव्य साहित्य | कविता सुषमा दीक्षित शुक्ला1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
प्रिय पूर्वज हमसे दूर हुए,
श्रद्धांजलि उन्हें समर्पित है।
वे ईशधाम में जा बैठे,
भावांजलि उनको अर्पित है।
प्रभु उनको ना कोई कष्ट मिले,
मिल जाए मुक्ति उन पुरखों को।
जिनकी पावन स्मृतियों से,
मन भारी है पर गर्वित है।
आओ श्रद्धांजलि भेंट करें,
सब प्यारे पुरखों को अपने।
उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,
अब पूर्ण करें उनके सपने।
शुचि नेह मिलेगा पितरों का,
जिनसे जन्मों के नाते हैं।
करते हैं तर्पण तारण हित,
प्रभु जिनको बुला लिया तुमने।
यदि जीते जी सेवा की नहीं,
बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।
ऐसी संतानें हैं कुल कलंक,
मृत पुरखों को बहलाते हैं।
यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि,
है प्यारे पुरखों को अपने।
पुरखों के सपने पूर्ण करो
वे अच्छी राह दिखाते हैं।
यह वन्दन है अभिनंदन है,
यह ही पुरखों का है तर्पण।
उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,
श्रद्धा के सुमन करो अर्पण।
तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न,
पा सच्चे प्रेम समर्पण को।
जो देते थे आशीष हमें
वो मरकर भी प्रेम निभाते हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अग्नि
- अब ना सखी मोहे सावन सुहाए
- अभिव्यक्ति के अविराम
- अमर शहीद
- आशादीप
- आख़िर सजन के पास जाना
- आज़ाद चन्द्र शेखर महान
- इतिहास रचो ऐ! सृजनकार
- ऐ मातृ शक्ति अब जाग जाग
- ऐ! कविता
- ऐ! बसन्त
- ऐ! सावन
- कन्या भ्रूण हत्या
- कहीं फ़र्श तो कहीं रँगे मन
- कान्हा
- कोरोना से दिवंगतों को श्रद्धांजलि
- गङ्गे मइया
- गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी
- छत्रपति शिवाजी
- जय महाकाली
- जय श्री राम
- जल के कितने रूप
- जाने जीवन किस ओर चला
- जीवन और साहित्य
- तुम बिन कौन उबारे
- तू बिखर गयी जीवनधारा
- दोस्ती
- नव वर्ष
- नव संवत्सर
- नवल वर्ष के आँगन पर
- परी लगे भैया को बहना
- पवन बसन्ती
- प्रभात की सविता
- बरसात
- बैरी सावन
- भावना के पुष्प
- मर्यादा पुरुषोत्तम
- माँ
- माता-पिता की चरण सेवा
- मेरा गाँव
- मैं एक पत्रकार हूँ
- यह कैसो मधुमास
- ये जो मेरा वतन है
- ये मातृ भूमि का वन्दन है
- रोम रोम में शिव हैं जिनके
- लक्ष्मी बाई
- वीरों का ले अरि से हिसाब
- शिक्षक प्रणेता राष्ट्र का
- शिक्षक ही पंख लगाते हैं
- सच्चा श्राद्ध
- सरस्वती वंदना
- सावन पर भी यौवन
- सिंघिनी
- सुभाष चन्द्र बोस
- हाँ मैं श्रमिक हूँ
- हिंदुस्तान के रहने वालो
- हुई अमर ये प्रेम कहानी
- हे गणेश!
- हे! सूर्यदेव
- क़ुदरत की चिट्ठी
- ख़ाकी
किशोर साहित्य कविता
स्मृति लेख
लघुकथा
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं