उन जैसी न बहन किसी की
संस्मरण | स्मृति लेख सुषमा दीक्षित शुक्ला15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
बात उन दिनों की है जब कोरोना का क़हर बरस रहा था। पूरे विश्व में हाहाकार मची हुई थी, हर तरफ़ अनहोनी हो रही थी मृत्यु का भयंकर तांडव मचा हुआ था। उसी समय छह अक्टूबर की शाम में मेरे बेटे कुलदीप को तेज़ बुख़ार ने घेर लिया। उस वक़्त हम लोग बहराइच स्थित अपने घर पर थे। प्राइवेट डॉक्टर्स भी मरीज़ को देखने से कतरा रहे थे; सरकारी अस्पतालों में कोरोना के डर से जाना दूभर था कि कोरोना इन्फ़ेक्शन हो जाएगा। बेटे की हालत बहुत ख़राब थी। मैंने लखनऊ में रहने वाली अपनी जिज्जी व भाँजी को फोन कर बेटे के हाल से अवगत कराया। मेरी दीदी दिल की मरीज़ होने के बाबजूद काफ़ी हिम्मती थीं; बहादुर व सहृदय भी। दयालुता व प्यार का प्रतिरूप थीं वह। उन्होंने मुझे फोन से काफ़ी तसल्ली दी व हिम्मत बँधवाई कि लखनऊ लेकर किसी तरह चली आओ भैया ठीक हो जाएगा।
मेरे बेटे के पूरे लक्षण कोरोना के थे। बेटे की स्थिति लगातार गिरती जा रही थी। इतना बीमार वह पहले कभी नहीं हुआ था बेहोशी-सी हो रही थी उसे। दीदी के दामाद ने मित्र डॉक्टर से रात 1 बजे फोन से लक्षणों के आधार पर कुछ दवा लिखवाई। डॉक्टर साहब को पूरा शक कोरोना का था। किसी तरह दवा मँगाकर देने से हल्का आराम लगा तो सुबह 4 बजे उसे लखनऊ गाड़ी से लेकर चल दी।
हम जैसे ही अपने घर पर पहुँचे ही थे कि मेरी 71 वर्षीय जिज्जी जो दिल की बड़ी मरीज़ थीं, जिनको कोरोना का ख़तरा बहुत ज़्यादा था टीका भी नहीं लगा था, वह बिना अपनी जान की परवाह किये मास्क लगाकर भगवती दुर्गा की तरह अपने बच्चों के साथ मेरे घर तुरन्त पहुँच गयीं। उन्होंने यह भी परवाह नहीं की उनके डॉक्टर ने उन्हें उस समय घर से निकलने से हर हाल में मना किया है। एक बार हार्ट अटैक पड़ चुका था उनको व इसके साथ ही उनके घर पर नन्हे-नन्हे उनके नाती-पोते थे जिनको भी कोरोना इन्फ़ेक्शन होने का ख़तरा था। इतनी संवेदनशील परिस्थिति में जब स्वस्थ व जवान लोग, क्या अपने क्या पराए, सभी एक-दूसरे से दूर भाग रहे थे, उस वक़्त मेरी प्यारी जिज्जी ने बुज़ुर्गियत की अवस्था में अपनी व अपने परिवार के प्राणों की परवाह न करके मेरा साथ दिया मेरे बच्चे को बचाने के लिए हर सम्भव मदद की।
मेरे घर पहुँचते ही स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अपने बेटे से मेरे बच्चे की कोरोना की जाँच तुरन्त करवाई। भगवान की दया व जिज्जी के आशीर्वाद से जाँच में कोरोना की पुष्टि नहीं हुई डेंगू साबित हुआ, तब कोरोना का भय दूर हुआ।
फिर उन्होंने डॉक्टर को दिखवाया व मेरा बेटा दीदी के आशीर्वाद से उनके स्नेह व सानिध्य से स्वस्थ हो गया।
अब तो प्यारी जिज्जी के केवल यादें ही शेष रह गयीं हैं! कौन करेगा इतना प्यार! कौन रखेगा इतना ख़्याल।
तभी तो मैंने लिखा था:
“तुम जैसी ना बहन किसी की इस जग में होती है।
ममता का दरिया है तू तो करुणा की ज्योति है।”
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