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बरसात

सुनु आई बरसात सखि, 
लगा हृदय बिच बाण। 
सिर्फ़ देह है सखि यहाँ, 
प्रियतम ढिंग है प्राण॥
 
किसके हित सँवरूँ सखी, 
किस पर करूँ सिंगार। 
बाट निहारूँ रात दिन, 
पिय नहिं सुनत पुकार॥
 
ऋतु पावस की सुरमई, 
पिया मिलन का दौर। 
धानी चूनर खेत में, 
बगियन में हैं मोर॥
 
यह कैसी बरसात सखि, 
जियरा चैन न पाय। 
नैनन से आँसू झरत, 
उर बहुतहि अकुलाय। 
 
पिय कबहूँ तो आयंगे, 
वापस घर की राह। 
बाट निहारूँ दिवस निसि, 
उर धरि चाह उछाह॥
 
सबके प्रियतम संग हैं, 
मोरे हैं परदेस। 
जियरा तड़पत रात दिन, 
यही हिया में क्लेष॥
 
मन मेरो पिय संग है, 
भावे नहिं घर-ठौर। 
वह दिन सखि कब आइहैं
पिय धरिहैं जब मौर। 
 
रात दिवस नित रटत हूँ, 
मैं उनही को नाम। 
वो ही मेरे चैन-सुख, 
वो ही चारोंधाम॥
 
डर लागत है सुनु सखी, 
पिय भूले तो नाह। 
हम ही उनकी प्रेयसी, 
हम ही उनकी चाह॥
 
ऋतु बरसाती सुनु ठहर, 
जब लौं पिया न होय। 
कोयल पपिहा से कह्ये
शोर करै नहिं कोय॥

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