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जल के कितने रूप 

जल ही तो जीवन है यारो,
सूक्ति  सुनी  ये होगी ।
जलमय ही शरीर मानव का,
मुक्ति  इसी से होगी।
 
इंद्रदेव अरु वरुण देव भी,
जलमय रूप दिखाते।
नदिया, सागर, बरखा, झरने,
जल के स्रोत  कहाते।
 
जल के कितने रूप निराले,
जल के बिना न जीवन है।
अमृत बनता विष बन जाता,
बन  जाता ये दर्पन  है।
 
जल में भोजन मत्स्य रूप में,
और कई फ़सलें होती।
जल में खिलता पुष्प पद्म का,
जल से  ही आँखें रोती ।
 
बिना  नीर के जीवन  कैसा 
सत्य बात है मीत यही।
धरती से अंबर तक फैला,
नदिया का संगीत यही।
 
विमल सलिल सबका जीवन,
इसको मत बर्बाद करो।
वृक्ष उगाओ  धरा बचाओ,
जनजीवन  आबाद करो।

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