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मर्यादा पुरुषोत्तम

हे! राम तुम्हारी धरती पर, 
अब सत्य पराजित होता है। 
 
चहुँ ओर दिखे अन्याय यहाँ, 
नित रावण पूजित होता है। 
 
तुमने तो कुटुंब की ख़ातिर, 
राज्य त्याग वनवास लिया। 
 
भ्रातृ धर्म पतिधर्म निभाया, 
पापी रावण का नाश किया। 
 
हे! राम दयादृग खोलो प्रभु, 
अब फिर से सब संताप करो। 
 
हम तेरे बच्चे बिलख रहे, 
हे पुरुषोत्तम अब माफ़ करो। 
 
जब रावण खर दूषण मारे, 
तो इन कष्टों की क्या क्षमता। 
 
अतुलित बलशाली राम प्रभु, 
तुमसे दुष्टों की क्या समता। 
 
विजय सत्य की होती है, 
यह ही सन्देश तुम्हारा है। 
 
हे! पुरुषोत्तम तुम फिर जन्मो, 
जन जन ने तुम्हें पुकारा है। 

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