मैं बुझे चाँद सा
काव्य साहित्य | कविता प्रो. ऋषभदेव शर्मा27 Oct 2018
मैं बुझे चाँद सा
अन्धेरे में छिपा हुआ बैठा था
सब रागिनियाँ डूब चुकी थीं
प्रलय निशा में
तभी जगे तुम
दूर सिंधु के जल में झलमल
और बांसुरी ऐसी फूँकी
अंधकार को फाँक फाँक में चीर चीर कर
सातों सुर बज उठे
सात रंगों वाले
बुझे चाँद में एक एक कर
सभी कलाएँ थिरक उठीं।
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