हलधर नाग का काव्य संसार
तीसरा सर्ग
जय दयामयी जय महामयी
श्री समलेई
सेमल-तले विराजमान देवी
चमकती लाल रंगई।
तीन दिन बीते पड़ा हुआ चरणों में
राजा बलराम
किस प्रकार करूँ पूजा
माँ तेरे नाम।
नियम-नीति अनुसार करता
पूजा-आराधना-सेवा
नहीं तो कहीं हो सकती है
भूल-चूक-टेवा।
भादों तृतीया उजियारा पक्ष
पूर्व नक्षत्र
ठीक आधी रात बरसेंगे मेघ
कूल छत्तर।
हुक्म देकर बोली माँ समलेई
सुनो, राजा बलराम
पहले चढ़ाना नया धान मुझे
साथ में दूसरा पूजा-काम।
राजा बलराम बोला, “माँ
हो गई महामुश्किल
भादों मास में धान तो क्या
फूटता नहीं एक फूल।
“कैसे दूँगा माँ तुझे
नया चारा, नया धान?
आदेश तुम्हारा चुनौती,
जैसा मेरा अनुमान।”
देवी बोली, “राजा बलराम,
उत्तर के जाओ किसी प्रांत
परती खेत में मिलेगा पका धान;
ले जाओ साथ एक दरांत।
“समझो, बता रही हूँ किस प्रकार
मनाओगे त्योहार
नियमों से चलना ही,
मानव-जीवन का सार।
“नियम और नीति बाड़ हैं;
ईश्वर शक्ति की सीढ़ी
असुर प्रकृति घुस नहीं सकती,
बच जाती नई पीढ़ी।
“त्योहार भाव का भूखा है,
निभाना चाहिए बरक्स
साल में एक बार यह मिटाता है,
अगर रिश्तों में हो खटास।
“लेपन-पोतन से निर्मल कर,
रखें घर-द्वार
भावपूर्ण मित मार्हासाद,
अर्पित करें वेभार।
“महिलाएँ, लड़कियाँ स्नान करेंगी उस दिन,
कर हल्दी-आँवले का लेपन
मेरे और नंगल के लिए बाँधेंगे,
लेकर राखी-बँधन।
“धान-खेत में दूध डालकर,
जलाएँ घी-बत्ती
और प्रार्थना करें, ‘हे धरती माता,
इस मौसम में हो फलवती।’
“रसोई के लिए ख़रीदना मिट्टी के नए बरतन,
पहनने के लिए नए-नए वसन
गाय-गोरू को खिलाने के बाद उनकी गर्दन पर
लगाना नए धागों का बँधन।
“नए चावल तलकर, कूटकर,
गुड़ मिलाकर बनाना ढेला
पूरा करना रसोई का काम,
सूरज ढलने की पूर्व वेला।
“भात-जाऊँ पीठा,
उसके साथ सारू का साग
तन-मन से बनाना उस दिन
ख़त्म नहीं होना चाहिए पाग।
“कुरेई पत्तों के खली दोना में
प्रसाद चढ़ाना मुझे।
जलाभिषेक करना मुझे सोच
‘नूआ खा, माँ समलेई।’
“परिवार, रिश्तेदार जहाँ भी हों,
सभी पहुँचेंगे घर उस दिन
टूटे मन जुड़ जाएँगे,
जब करेंगे सामूहिक भोजन।
“मेरा प्रसाद खाओगे उस दिन,
जब तक नहीं भर जाता पेट
नुआखाई त्योहार पर, जितना खाएँ,
फिर भी दर्द नहीं होगा पेट।
“नुआखाई भेंट पर जुहार करेंगे,
बड़ों के छूकर पाद
अनुजों के गाल चूम,
देंगे आशीर्वाद।
“दुश्मनी और नफ़रत भूल जाओ,
क्रोध, अहंकार और हिंसा का ताप
निर्मल मन से सभी के साथ,
सभी करेंगे मेल-मिलाप।
नहीं भेदभाव जाति धर्म
सभी अपने भाई बहिन
मनुष्य समाज में नुआखाई
है त्योहार बड़ा महान
“जगत माता समलेई मैं,
सबको बिठाकर कोल
नुआखाई भेंट पर तुम हँसोगे,
तो मैं भी हसूँगी भोल।
“जीव के जन्मदिन से,
होती है अन्न-पूजा
कटाई के बाद हर कोई प्रसाद चढ़ाते,
उन दिनों अच्छे विचार सूझते।
“त्योहार कराता मेल-मिलाप,
भगारी भी हो जाता भाई
जगत में नहीं ऐसा त्योहार
जैसा उत्कर्ष है नुआखाई”
पुस्तक की विषय सूची
क्रमशःलेखक की पुस्तकें
लेखक की अनूदित पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
साहित्यिक आलेख
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- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
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- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत और नीदरलैंड की लोक-कथाओं का तुलनात्मक विवेचन
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- मेरी नज़रों में ‘राजस्थान के साहित्य साधक’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
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पुस्तक समीक्षा
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- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
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अनूदित कहानी
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
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