हलधर नाग का काव्य संसार
एक मुट्ठी चावल के लिए
चारों तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पहाड़,
घनघोर जंगल
इंद्रावती नदी पर बाँध,
रोक रहा हो जैसे हिलोरे खाता सागर,
दिखाई देता भयंकर।
दशहरा-छुट्टी पर कॉलेज के छात्र
आए यहाँ करने वन-भ्रमण
इधर-उधर देखा उन्होंने
दिखाई पड़ी पत्थर तोड़ती बूढ़ी,
एक पहाड़ के नीचे।
सिकुड़ी झुर्रीदार उसकी त्वचा;
काले शरीर से निथरता पसीना,
उम्र होगी अस्सी या नब्बे,
'फोटो खींचों, फोटो’, कहकर
इकट्ठे हो गए सभी।
कैमरे से क्लिक करते ही,
भड़क उठी वह बुढ़िया
“हरामखोर! तुम्हें खा जाए शेर,
मेरा फोटो खींच रहे हो
मालूम नहीं, तुम्हारी दादी के बराबर हूँ।
“उधर जाओ, वहाँ रेज़ा है बहुत
उनमें कई धांगड़ी भी है
वहाँ जाकर खींचों फोटो
पके हुए पत्ते, नब्बे साल की औरत का
शर्म नहीं आती फोटो खींचते?”
एक ने पूछा, “बूढ़ी माँ, बताओ,
इस उम्र में इतना कठिन काम
हाड़-तोड़ परिश्रम
देखकर होता हैं हमें अचरज
मन में होता घमघम”
बुढ़िया ने कहा, “सुनो, बच्चे
मेरे भी कभी दिन थे
मैं थी ग्राम-प्रधान की बेटी
ज़मींदार की बहू,
दिखने में सुंदर, गुणवान, सुयोग्य।
“घर में प्रचुर धन
सौ एकड़ की खेती
छोटे खेतों से मिलती दलहन,
गुंजी, मंडिया, कुदो, मूँगफली
घर रहता हमेशा भरा।
“किसी चीज़ की कमी नहीं,
पहनती बहुत सोना,
सुख-भोग से रहती थी मैं
नौकर-चाकर भी थे बहुत
मैं थी लाखों की मालिकिन।
“ज़मींदार मेरे पति
दो जवान बेटे
किसी जन्म का पाप,
इंद्रावती बाँध में बह गए!
सभी हो गए साफ़।
“मैं अभिशप्त, सभी को निगल गई,
अब न आगे कोई, न ही पीछे
पता नहीं, मुझे क्यों छोड़ गया यम?
एक मुट्ठी चावल के लिए,
इस उम्र में करती इतना काम।”
समय सर्वाधिक बलवान
शगड़-डंडे की तरह ऊपर-नीचे,
क़िस्मत जाती बदल,
राजा हो जाता भिखारी,
एक मुट्ठी चावल के लिए
ज़मींदारिन धीरा तोड़ रही
पत्थर मार मन।
पुस्तक की विषय सूची
- समर्पित
- भूमिका
- अभिमत
- अनुवादक की क़लम से . . .
- प्रथम सर्ग
- श्री समेलई
- पहला सर्ग
- दूसरा सर्ग
- तीसरा सर्ग
- चौथा सर्ग
- हमारे गाँव का श्मशान-घाट
- लाभ
- एक मुट्ठी चावल के लिए
- कुंजल पारा
- चैत (मार्च) की सुबह
- नर्तकी
- भ्रम का बाज़ार
- कामधेनु
- ज़रा सोचो
- दुखी हमेशा अहंकार
- रंग लगे बूढ़े का अंतिम संस्कार
- पशु और मनुष्य
- चेतावनी
- स्वच्छ भारत
- तितली
- कहानी ख़त्म
- छोटे भाई का साहस
- संचार धुन में गीत
- मिट्टी का आदर
- अछूत – (1-100)
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