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हलधर नाग का काव्य संसार

अनुवादक की क़लम से . . . 

 

हलधर नाग से मेरी पहली मुलाक़ात दस-बारह साल पहले मेरे साथी प्रख्यात संबलपुरी कवि श्री अनिल दास के घर, ब्रजराजनगर में हुई थी, वहाँ उन्होंने दौ सौ से ज़्यादा पौराणिक संतों के नाम एक ही साँस में, बिना कहीं रुके हुए, सुना दिए थे, वह भी ताल और लय के साथ। यह मेरे लिए एक विस्मयकारी घटना थी। आज भी मुझे अच्छी तरह याद है कि उस समय वे ब्रजराजनगर महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे हैं। उनका नाम सुनकर दूर-दूर से बहुत साहित्यानुरागी आए थे और उस आयोजन में मैं भी श्रोता के रूप में शामिल हुआ था, मेरे मित्र अनिल दास के कहने पर। 

कॉलेज के प्रांगण में सुसज्जित मंच पर छात्रों द्वारा उनके पद-प्रक्षालन किए गए थे और संबलपुरी अंग-वस्त्र ओढ़ाकर सम्मान। हज़ारों की तादाद में इकट्ठे हुए छात्रों के लिए विशेष आकर्षण के बिंदु थे। उस समय उन्होंने लगभग आधा या पौन घंटे तक अपने महाकाव्य ‘महासती उर्मिला’ का पाठ किया था। उस समय उनके हाथ में न तो कोई काग़ज़ था और न ही कोई पुस्तक। श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध करने वाला उनका काव्य-पाठ देखते ही बनता था। पहली बार मेरी समझ में आया कि किसी भी भाषा में आश्चर्यजनक सम्मोहन-शक्ति होती है! पूरा पांडाल करतल ध्वनियों से गूँज रहा था। मैंने अपने जीवन में ऐसे आशु कवि को पहली बार देखा था। मेरे मन में बार-बार यह विचार कौंध रहा था कि विलक्षण मेधा और अद्भुत स्मृति-शक्ति से ओत-प्रोत इस अलौकिक पुंज पर अवश्य ही सरस्वती का वरदान रहा होगा। 

पद्मश्री और पद्म विभूषण से अलंकृत सुविख्यात द्विभाषीय कवि (ओड़िया एवं अंग्रेज़ी) श्री मनोज दास उनके बारे में लिखते हैं कि ऐसा लगता है श्री हलधर नाग अपनी आंतरिक दुनिया में सदैव खोए रहते हैं, सरस्वती की कृपा से उनके भीतर मिथकीय पात्रों की सृष्टि अपने आप पैदा होती है। उनका महाकाव्य ‘महासती उर्मिला’ पढ़ने के बाद मुझे लगा कि उन्हें सृजन-शक्ति और दूरदृष्टि दोनों दुर्लभ सारस्वत उपहार के रूप में प्राप्त हुई है। 
उसी हलधर नाग से मेरी दूसरी मुलाक़ात गवर्नमेंट ऑटोनामस कॉलेज, अंगुल में ‘संवाद साहित्य-घर’ के वार्षिक उत्सव के अवसर पर हुई थी, जिसमें वे मुख्य वक्ता के रूप में पधारे रहे थे। इस अवसर पर उपस्थित विशेष साहित्यकारों में संवाद साहित्य घर की राज्य संयोजिका शुभश्री लेंका, आईपीएस अधिकारी डीआईजी श्री नृसिंह भोल एवं गवर्नमेंट ऑटोनामस कॉलेज, अंगुल के सेवानिवृत्त प्राचार्य, जो अंगुल साहित्य संवाद घर के अध्यक्ष भी थे, श्री शांतनु सर एवं अंगुल ज़िले के दूर-दूर से पधारे साहित्यप्रेमी श्रोतागण उपस्थित थे। उनके कर-कमलों द्वारा मेरी दो पुस्तकों का विमोचन हुआ था, वे थीं—ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सीताकान्त महापात्र के यात्रा-संस्मरण ‘स्मृतियों में हार्वर्ड’ एवं हिन्दी के धर्मवीर भारती की कालजयी पुस्तक ‘गुनाहों के देवता’ की तरह ओड़िया भाषा में नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने वाले बेरिस्टर गोविंद दास का सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘अमावस्या का चाँद’। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री भोल ने डॉ. हलधर नाग के साहित्य को कालजयी बताते हुए देश की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद की अनिवार्यता और महत्ता पर प्रकाश डाला था। यहाँ तक कि उन्होंने अपने सम्बोधन में मेरा नाम लेते हुए कहा था कि हिंदी के विशिष्ट अनुवादक दिनेश कुमार माली जी अगर इस कार्य का बीड़ा उठाते हैं तो न यह केवल ओड़िया यह संबलपुरी साहित्य के लिए वरन् अखिल भारतीय साहित्य के लिए गौरव का विषय होगा। उनके इस कथन पर प्रेक्षागृह में उपस्थित साहित्यकारों की प्रतिध्वनित हो रही तालियों ने मेरा मनोबल बढ़ाया था और मैं मन ही मन सोचने लगा किसी भी तरह से हलधर जी के साहित्य का मुझे अनुवाद करना चाहिए। उनके वे कथन मुझे आंतरिक तौर पर चुनौती की तरह लगने लगे। 

कुछ ही दिनों बाद जब मैं ऐमज़न पर हलधर नाग की किताबों को खोजने लगा तो मेरे लिए सुखद आश्चर्य की बात थी कि श्री सुरेंद्र नाथ द्वारा अंग्रेज़ी में अनूदित तीन खंड काव्यांजलि के रूप में जेनिथ स्टार, कटक से प्रकाशित हुए थे और सबसे बड़ी ख़ास बात यह थी कि उन खंडो में एक तरफ़ ओड़िया लिपि में लिखी गई संबलपुरी-कोसली भाषा में उनकी कविताएँ तो दूसरी तरफ़ यानी सामने वाले पृष्ठ पर अंग्रेज़ी में उनका अनुवाद दिया हुआ था। मेरे लिए ये किताबें सोने पर सुहागा सिद्ध हुई। 

महानदी कोलफील्ड लिमिटेड में सत्रह साल अविभाजित संबलपुर ज़िले के ब्रजराजनगर में भूमिगत हिंगीर रामपुर कोलियरी एवं संबलेश्वरी खुली कोयले की खदानों में बतौर खनन अभियंता काम करने से वहाँ के स्थानीय लोगों से अटूट संपर्क बना रहा। यही वजह थी संबलपुरी भाषा के स्थानीय शब्द मेरे ज़ेहन में प्रवेश करने लगे और देखते-देखते सत्रह साल की दीर्घ अवधि में मेरे पास संबलपुरी शब्दों का विपुल भंडार मानस-पटल पर मौखिक रूप से तैयार हो चुका था। और जहाँ कहीं अनुवाद के दौरान कठिनाई अनुभव हुई, तब उनके समानार्थी अंग्रेज़ी शब्दों ने भाषांतरण प्रक्रिया में मुझे सहयोग प्रदान किया। अनुवाद के पश्चात पांडुलिपि को दो-तीन अलग-अलग साहित्यकारों से पुनः निरीक्षण कराया गया और जहाँ कहीं कुछ ग़लतियाँ नज़र आईं, उनके सलाह-मशविरा के अनुसार उनका संशोधन कर लिया गया। 

यह सत्य है स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में शत-प्रतिशत अनुवाद करना नामुमकिन है, मगर फिर भी मेरा यह भरसक प्रयास रहा है कि मूल भावार्थ के साथ-साथ ताल, लय और कविता के आत्मा की अक्षुण्णता बनी रहे। कवि की अधिकांश कविताएँ या महाकाव्य ना केवल तुकांत, बल्कि ध्वन्यात्मक भी है इसलिए अनुवाद के दौरान कुछ जगह पर लक्ष्य भाषा अतुकांत और फिसलती हुई प्रतीत होती है, मगर कविता का मूल भाव बना रहता है। 

हलधर नाग के दो महाकाव्य ‘श्री समलई’ एवं ‘अछूत’ एवं विभिन्न अवसरों पर उनके द्वारा लिखी गई कविताओं का अनुवाद मेरी पुस्तक ‘हलधर नाग का काव्य-संसार’ आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। व्हाट्स ऐप, इन्टरनेट, मोबाइल आदि सोशियल नेटवर्क पर मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा और आशा करता हूँ हिंदी जगत में यह पुस्तक का भरपूर स्वागत होगा। 

दिनेश कुमार माली
लिंगराज टाउनशिप, तालचेर
दिनांक 11.08.20

पुस्तक की विषय सूची

  1. समर्पित
  2. भूमिका
  3. अभिमत
  4. अनुवादक की क़लम से . . . 
  5. प्रथम सर्ग
  6. श्री समेलई
  7. पहला सर्ग
  8. दूसरा सर्ग
  9. तीसरा सर्ग
क्रमशः

लेखक की पुस्तकें

  1. हलधर नाग का काव्य संसार
  2. शहीद बिका नाएक की खोज दिनेश माली
  3. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  4. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  5. भिक्षुणी
  6. गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी
  7. त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन 
  8. स्मृतियों में हार्वर्ड
  9. अंधा कवि

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. अदिति की आत्मकथा
  2. पिताओं और पुत्रों की
  3. नंदिनी साहू की चुनिंदा कहानियाँ

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