मैथिलीशरण गुप्त: एक योद्धा
आलेख | साहित्यिक आलेख अर्चना मिश्रा15 Aug 2023 (अंक: 235, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक युग के कवि माने गये। गुप्त जी को सिर्फ़ कवि कहना ही काफ़ी नहीं होगा, ये एक युगकवि कहलाये। इनका साहित्य, साहित्य के प्रति पैनी नज़र, शब्दों की सजगता, भाषा शैली, वाक्य विन्यास, भावों की भरमार सब यूँ ही आसानी से नहीं आ गया, इन सबमें गुप्त जी का व्यक्तित्व भी परिलक्षित होता है।
किसी भी कवि के साहित्य पर उसके सामाजिक, पारिवारिक, मनोवैज्ञानिक और सबसे ज़्यादा कवि की सोच हावी रहती है। गुप्त जी विचारों के कवि थे, समाज में चल रही हर प्रकार की विविधताओं को उन्होंने अपने साहित्य का विषय बनाया। उनकी पारखी नज़र, किसी भी बात को सरल ढंग से रखने का तरीक़ा, उन्हें औरों से अलग करती है। उनके साहित्य में राष्ट्रवादी, जनवादी स्वर भी मुखरित रहा। उनके काव्यों में राष्ट्रीयता और गाँधीवाद मुख्यतः दिखाई देता है। मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएँ राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत हैं। वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम भक्त थे। परन्तु अन्धविश्वासों और थोथे आदर्शों में उनका विश्वास नहीं था। वे भारतीय संस्कृति की नवीनतम रूप की कामना करते थे। इसलिए उन्हें राष्ट्रकवि की भी संज्ञा दी गई है।
उनके काव्यों में महिलाओं के प्रति एक विशेष भाव देखने को मिलता है, उन्होंने अपने काव्यों में उन स्त्रियों को उठाया जिनकी अंश मात्र भी कहीं चर्चा नहीं थी। अपने ‘साकेत’ महाकाव्य के माध्यम से उन्होंने उर्मिला की विरह वेदना को इस तरह से उकेरा की पाठकों का कलेजा ही बाहर आ जाये। वहीं उनके दूसरे खंड-काव्य यशोधरा में भी कहानी सिर्फ़ यशोधरा के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
जहाँ जो स्त्रियाँ मज़लूम रहीं, अपना दर्द दूसरों के आगे बाँट ना सकीं, ऐसी ही उपेक्षित स्त्रियों को उन्होंने अपने साहित्य में जगह दी। उन्होंने विरहणी नायिकाओं का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया जो अनेकों युगों के लिए अमर हो गया। इनकी नायिकाओं की ख़ासियत ये रही क विरह की अग्नि पीड़ा में जलकर ये ख़ाक नहीं हुईं, अपितु कुंदन समान इनका व्यक्तित्व निखरा व दूसरों के लिये भी प्रेरणा स्रोत रहा।
गुप्त जी ने प्रकृति पर भी अपनी लेखनी चलाई, उनके साहित्य में अध्यात्म व रहस्यवाद के भी दर्शन भी होते हैं। वे जनमानस के कवि थे व अपनी कविताओं के माध्यम से सोई हुई जनता को जगाने का प्रयत्न भी किया करते थे। अतः कहा जा सकता है कि वो ऐसे जनवादी कवि थे जिनके साहित्य में जनमानस, राष्ट्रीयता, गाँधीवाद, स्त्रियों को विशेष महत्त्व दिया गया है।
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