उड़ान
काव्य साहित्य | कविता अर्चना मिश्रा15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मेरे मन में हैं बहुत अभिलाषाएँ,
अभी तो मैंने बढ़ना शुरू किया,
दुनिया को समझना शुरू किया,
ना रोको मुझे उड़ने से
अभी तो यात्रा शुरू हुई है
बहुत दूर तलक जाना है पापा
समझो मेरे मन को मम्मी
करता हूँ में थोड़ी शैतानी
अभी से मुझे मायूस करो न
दे दो थोड़ी सी आज़ादी
आपके पथ प्रदर्शन से
मैं अच्छा नाम कमाऊँगा
जग में कुछ करके दिखलाऊँगा
मेरे मन में है बहुत जिज्ञासा
उसको न दबाओ मम्मी पापा
मेरे सपनों को पंख लगा दो
मेरे पंख न काटो पापा।
माना जग है बहुत बुरा
अँधेरा रास्तों में है भरा
मेरे संग आओ ना पापा
इस तिमिर को भगाओ ना पापा
एक नई सुबह लाओ ना पापा
ज्ञान से परिपूर्ण रहूँ
भटक कहीं न पाऊँ मैं
सही ग़लत के भेद को
अच्छे से समझ पाऊँ मैं
ग़लती जो भी भी करूँ मैं
उसपे बेशक डाँट लगायें
पर मेरी उड़ान पर
बेवजह न लगाम लगायें
नन्हा सा दिल है मेरा
मैं भी तो ख़ुद नन्हा हूँ
इतने भारी भरकम
अनुशासन ना लगाओ पापा
मेरे संग आप भी उड़ना
सीखें क्या मैं चाहता हूँ
समझना सीखें
समझाना सीखें
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