अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कबीर दास की उल्टी बानी भीगे कंबल बरसे पानी

 

कबीर दास की उल्टी बानी/बरसे कंबल भीगे पानी—कबीर दास जी की उलटबासियाँ सुनने में थोड़ी अजीब या पूरी ही उल्टी लगती हैं; एक बार सुनकर या पढ़कर इसे समझ पाना आसान नहीं। कबीर दास जी पर नाथ संप्रदाय, ज्ञानाश्रयी शाखा का ख़ासा प्रभाव था। उनकी दृष्टि दूरदर्शिता की परिचायक थी जो कि उनके साहित्य में परिलक्षित होती थी। एक बार उनका दर्शन समझ आ जाए तो उसका निर्वहन ज़्यादा मुश्किल नहीं। उनके पूरे साहित्य में एक रहस्यवाद दृष्टिगोचर होता है, जो आसानी से समझ आने वाली बात नहीं। कबीर जी मस्तमौला, फक्कड़, बेबाक़ शासन पर प्रहार करने वाले व्यक्ति थे। ताउम्र ही उनकी कोशिश रही की ग़लत को समूल से ही नष्ट किया जाए, किसी भी समस्या की जननी के मूलभूत कारणों का पता लगा उसे नष्ट किया जाना चाहिए। उनका पूरा साहित्य व कबीर साहेब जी आज के समय में भी प्रासंगिक है। कबीर जी की शिक्षाएँ व उनका जीवन दर्शन आज समसामयिक है। उसका अनुकरण कर अपने जीवन को भी श्रेष्ठ ऊँचाइयों पर के जा सकते हैं। 

यहाँ उनकी उलटबासी बरसे कंबल भीगे पानी की बात की जाए तो यहाँ उन्होंने अपनी बात को प्रकट करने के लिए जो भी उपमान लिए, उनका तो कोई सानी ही नहीं है। यहाँ कंबल का अर्थ गर्म से लिया गया है। कंबल का प्रयोग कब किया जाता है जब ठंड अत्यधिक हो और गरमाहट की ज़रूरत हो तो कंबल ओढ़ा जाता है। लेकिन अचरज की बात कंबल बरस कैसे रहा है? यहाँ कंबल रूपी काम, क्रोध, वासना, अग्नि बरस रही है जो कि स्वयं में गरम है। पूरे वातावरण में ही काम, क्रोध की आँधी आयी हुई है। और पानी का अर्थ जीवात्मा से लिया गया है, यानी हमारी जो आत्मा है, जो मन है, वो इन विकारों रूपी कंबल से भीग रहा है। हमारी आत्मा इन वासनायुक्त, लोलुपतायुक्त विकारों से ग्रसित हो रही है, भीग रही है। हमारे ऊपर हर तरह के विकार आज हावी हो रहे हैं। मन पर संयम ही नहीं है कि कैसे अपने मन रूपी घोड़े पर लगाम लगाई जाए। काम, क्रोध, मोह, माया, अहंकार आज ख़ूब बरस रहे हैं और हमारा पानी रूपी मन या आत्मा उसमें ख़ूब भीग रहे हैं, ख़ूब मस्त हो रहे हैं। इनसे निकलने का कोई उपक्रम नहीं कर रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि जब तक अध्यात्म को नहीं अपनायेंगे, सिर्फ़ विषयाकर्षण में लिप्त रहेंगे तो मानव जीवन सफल ही नहीं हो पायेगा। सिर्फ़ सांसारिक तृष्णाओं में लिप्त रहेंगे, भगवान को भी एक उपक्रम या आदत या एक जीवनचर्या से जोड़ते हुए देखेंगे तो वो आराधना ही नहीं है। जब तक ईश्वर से, मन से संपर्क ही नहीं साधा हम अपने भीतर कभी गये ही नहीं, अंतरात्मा से साक्षात्कार हुआ ही नहीं, तो वो भक्ति किस काम की। इन्हीं शब्दों के साथ विदा लेते हुए 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

अपना अपना स्वर्ग
|

क्या आपका भी स्वर्ग औरों के स्वर्ग से बिल्कुल…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

साहित्यिक आलेख

चिन्तन

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं