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मर्यादा की लड़ाई 

 

आज का रावण कौन है, 
जानते समझते हुए भी सब मौन हैं 
जल रहे सब अपनी ही मृग मरीचिकाओं में
इच्छाओं का स्वामी अब कौन है 
काम क्रोध लालच की पताका लहरा रही 
अंकुश लगाने वाला अब बचा ही कौन है। 
अनेकों बार मरा है, फिर उठ उठ के जी गया, 
हर युग में रावण आया, 
और हर युग में ही जीत गया। 
स्वाभिमान की लड़ाई थी, 
अपनी अपनी मर्यादाओं पर बात बन आयी थी 
एक और सूर्पणखा की इज़्ज़त थी 
उसकी नाक पर जो प्रहार ना होता 
 शायद देवी सीता का भी हरण ना होता। 
अपनी अपनी इच्छाओं के कारण 
स्त्रियों को ही रौंदा गया, फिर 
स्त्री का ही नाम लेकर युद्ध आरंभ हुआ। 
कमियाँ तो सब जगह थी 
कहीं अहंकार हावी हुआ 
कहीं स्वाभिमान हावी हुआ 
बंधन था तो भी दुख 
आज़ाद हुई तो भी दुख 
दुख ही जीवन की कथा रही 
क्या कहे अब जो नहीं कहीं। 
ना चाह रावण बनने की 
ना चाह कठोर मर्यादा की 
बन जाऊँ में बस सुघर इंसान
यही कामना है श्री राम 

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