मर्यादा की लड़ाई
काव्य साहित्य | कविता अर्चना मिश्रा1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
आज का रावण कौन है,
जानते समझते हुए भी सब मौन हैं
जल रहे सब अपनी ही मृग मरीचिकाओं में
इच्छाओं का स्वामी अब कौन है
काम क्रोध लालच की पताका लहरा रही
अंकुश लगाने वाला अब बचा ही कौन है।
अनेकों बार मरा है, फिर उठ उठ के जी गया,
हर युग में रावण आया,
और हर युग में ही जीत गया।
स्वाभिमान की लड़ाई थी,
अपनी अपनी मर्यादाओं पर बात बन आयी थी
एक और सूर्पणखा की इज़्ज़त थी
उसकी नाक पर जो प्रहार ना होता
शायद देवी सीता का भी हरण ना होता।
अपनी अपनी इच्छाओं के कारण
स्त्रियों को ही रौंदा गया, फिर
स्त्री का ही नाम लेकर युद्ध आरंभ हुआ।
कमियाँ तो सब जगह थी
कहीं अहंकार हावी हुआ
कहीं स्वाभिमान हावी हुआ
बंधन था तो भी दुख
आज़ाद हुई तो भी दुख
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहे अब जो नहीं कहीं।
ना चाह रावण बनने की
ना चाह कठोर मर्यादा की
बन जाऊँ में बस सुघर इंसान
यही कामना है श्री राम
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
साहित्यिक आलेख
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं